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________________ . // अथ तिर्यक्गति अधिकारे प्रथम स्थितिद्वार // अवतरण-जिस तरह मनुष्यगतिमें भवनके बिना आठ द्वार कहे, उसीके अनुसार तिर्यंचगतिके मी आठ द्वारोंका वर्णन करनेसे पहले 'स्थितिद्वार ' को स्थूल रूपमें कहते हैं। बावीस-सग-ति-दसवाससहसऽगणि तिदिण बेंदिआईसु / बारस वासुणुपण दिण, छ मास तिपलिअढिई जिट्ठा // 284 // गाथार्थ-पृथ्वीकाय जीवोंकी उत्कृष्ट आयुष्य-स्थिति 22 हजार वर्षकी, अप्कायकी 7 हजार वर्ष, वाउकायकी 3 हजार वर्ष, वनस्पतिकायकी 10 हजार वर्षकी, अग्निकायकी 3 अहोरात्र, दोइन्द्रियकी 12 वर्ष, त्रिइन्द्रियकी 49 दिवस, चउरिन्द्रिय जीवोंकी 6 मास और तिर्यंच पंचेन्द्रियोंकी 3 पल्योपमकी उत्कृष्ट स्थितियाँ- जानें / / 284 // विशेषार्थ-अव चतुर्थ तिर्यंचगतिके अधिकारमें आठ द्वारों के बारेमें कहते हैं / यहाँ तियेच पांच प्रकारके हैं / एक इन्द्रियवाले, दोइन्द्रिय, त्रिइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय / इनमें एकेन्द्रिय पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पतिके भेदसे पांच प्रकारके हैं। अर्थात् पांच भेद एकेन्द्रियके तथा दोइन्द्रियसे पंचेन्द्रिय तकके चार, कुल नौ भेद तिर्यचके हैं / इनमें आठ भेद तो संमूच्छिमपनेमें हैं / तथा पंचेन्द्रिय गर्भज और संमूछिम दो प्रकारसे है / यहाँ गर्भज तथा संमूच्छिमके भेदकी अपेक्षा बिना ही सामान्यतः नौ प्रकारके तिर्यंचोंकी स्थिति-आयुष्यको बताते हैं / ___ भिन्न-भिन्न स्थिति आगे कहेंगे / यहाँ जो स्थिति कही वह वादर स्थावरोंकी समझना, साथ ही बादर साधारण वनस्पतिकी स्थिति अन्तर्मुहूर्तकी जाने / सूक्ष्म स्थावरोंकी तो उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्तकी, जघन्य क्षुल्लक भवकी है / ___यहाँ गाथार्थमें जो उत्कृष्ट स्थिति कही वह प्रायः निरुपद्रव स्थानमें वर्तित जीवोंकी समझना, कि जहाँ उनके आघात प्रत्याघातोंके निमित्त बनते न हों अन्यथा प्रायः मध्यमकक्षाके आयुष्यवाले जीव ही अधिक समझना / [ 284 ] अवतरण-अब पृथ्वीकायके भेदोंमें सूक्ष्म स्थिति बताते हैं / 433. प्रश्न-सिद्धगिरि पर वर्तित रायण वृक्ष जो सदाकालसे शाश्वत माना जाता है उसके दस हजार वर्ष होने पर नाश होना चाहिए उसके बजाय अब तक सजीव चलता आया है तो इसका समाधान क्या? उत्तर-उस वृक्षके जीव चालू आयुष्य पूर्ण होने पर पुनः वहीं उत्पन्न होते हैं अथवा अन्य जीव उस स्थलमें आकर उत्पन्न होते हैं तथा वृक्ष हमेशा सजीव रहा करता है।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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