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________________ तीन वेदकी स्थिति और उनके लक्षण * * 97 . यहाँ भावपुरुष वेद के उदयसे जीवको स्त्रीके (विषयोपभोगरूप ) संसर्गसुख की इच्छा होती है / भावस्त्रीवेद के उदयवाले जीवको पुरुष के संसर्गसुखकी इच्छाअभिलाषा होती है, और भावनपुंसक वेद के उदय से स्त्री-पुरुष दोनों के संसर्गसुख की कामना होती है / इस तरह द्रव्य और भाव दोनों प्रकार के वेद का स्वरूप कहा / विकारमें अल्पबहुत्व-पुरुषवेद का विकार सबसे कम समय तक टिकता है / स्त्रीवेद का विकार उससे अधिक समय स्थायी रहता है और नपुंसक वेदका विकार स्त्रीवेदका विकार से भी अधिक विशेष समय तक टिकता है। ___ इन तीनों भाववेद की विकारस्थिति को शास्त्र में तीन उपमाओंसे समझाई है / अर्थात् पुरुषवेद तृणाग्नि के समान, स्त्रीवेद गोमय-अग्नि के समान और नपुंसकवेद नगरदाह-अमि के समान / तृणाग्नि-तृण अर्थात् घास की आग जैसा / जिस तरह घास शीघ्र सिलग पड़ती है और बुझ भी जल्दी जाती है, उसी तरह पुरुषवेदवाले पुरुष का-स्त्री संसर्गरूप विकार-पुरुष की अपनी तथाप्रकार की विशिष्ट रचना और वेदके कारण सत्वर उत्थान पाता है और वह विकार जल्दी से शांत भी हो जाता है, स्त्रीवेद का विकार उपले की अग्नि जैसा या अंगारे जैसा है, जो उसकी विशिष्ट और गहन शारीरिक रचना के कारण (स्त्री को वह ) जल्दी प्रकट नहीं होता, तथा प्रकट होनेके बाद ( पुरुष संसर्ग होने पर भी) जल्दी शांत भी नहीं होता / और नपुंसक वेदका विकार तो नगर दाह के समान तप्त ईन्ट के जैसा होनेसे बहुत ही लंबे समयके बाद शांत होता है। नपुंसक को कामविकार प्रकट होने में कितना समय लगे इस संबंध में उल्लेख नहीं मिला अतः मध्यम समय की कल्पना ठीक लगती है / पुरुष में कठोर भाव मुख्य होनेसे उसे कोमल तत्त्व का आकर्षण रहा करता है / स्त्री में अति मृदु-सुकोमल भाव का प्राधान्य होनेसे कठोरत्व (पुरुष) की अपेक्षा रहती है / जबकि नपुंसक में दोनों भावों का मिश्रण होनेसे दोनों तत्त्वों के उपभोग की झंखना. रहा करती है। क्रमशः तीनों वेद के लक्षण बताती श्री स्थानांग तथा पनवणासूत्रकी टीकामें से गाथाएँ नीचे उद्धत की हैं / 404. दिगम्बरीय मतानुसार / बृ. सं. 13
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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