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________________ * मनुष्यगति आश्रयी अष्टद्वार व्यवस्था प्रदर्शक यंत्र * *9 . // मनुष्यगति आश्रयी अष्ट द्वार व्यवस्थाप्रदर्शक यन्त्र // आठों द्वारके नाम ग० उत्कृष्टमान | ग० जघन्यमान स० उत्कृष्टमान स० जघन्यमान 1. स्थितिमान 3 पल्योपम अंतर्मुहूर्त का | अंतर्मुहूर्त का / अंतर्मुहूर्त का 2. देहमान 3 कोसका अंगुल असंख्य | अंगुल असंख्य 'अंगुल असंख्य भाग भाग भाग 3. उपपातविरह 1 समय 24 मुहूर्त 1 समय 4. च्यवनविरह यावत् संख्य 5. उपपातसंख्या एक-दो-तीन यावत् असंख्य एक-दो-तीन 6. च्यवनसंख्या 7. गतिद्वार / तेउकाय, वायुकाय इन दंडकों को छोड़कर शेष 22 दंडकों के जीव मनुष्य गति में उत्पन्न हो सकते हैं, परंतु इतना विशेष कि सात नारकी के एक ही दंडकमेंसे सातवीं नारकी कम करना, और इस तरह पंचेन्द्रिय मनुष्य और तिर्यच के दडकमेंसे असंख्यवर्षायुषी युगलिक मनुष्य-तिर्यंच कम करेः हरि-अर्हन्-बलदेव-वासुदेव और चक्री के पांच मनुष्य रत्नो देव-नरक से ही आए होते हैं / हस्ति तथा अश्व रत्न तिर्यच वर्जित करके तीनों गतिमेंसे आए होते हैं और सात एकेन्द्रिय रत्न भव० वैमा० से आए होते हैं / 8. आगतिद्वार संख्यवर्षायुषी मनुष्य चारों गतिमें जा सकते हैं. और उनमें जो वज्रऋषभ नाराच संघयण से युक्त होते हैं वे तो मोक्ष सहित पांचों गतिमें जघन्यसे एक, दो यावत् उत्कृष्टसे एक समय में 108 जाते हैं। अवतरण-अब आगतिद्वार में मनुष्यों की वेद-लिंगाश्रयी गति की विशेषता . ' कहते हैं / वीसित्थी दस नपुंसग, पुरिसट्ठसयं तु एगसमएणं / सिज्झइ गिहि अन्न सलिंग, चउ दस अट्ठाहिअसयं च // 272 // गाथार्थ-स्त्रियाँ उत्कृष्टसे एक समय में बीस मोक्ष में जाएं, नपुंसक उत्कृष्ट दस और पुरुष उत्कृष्ट से एक ही समय में एकसौ आठ मोक्ष में जाते हैं / लिंगमें- गृहस्थ 402. अन्य दर्शन के तापसादि वेषरुप में भी मोक्ष में जा सकते हैं, क्योंकि वे सद्गुरु के योगसे वा तथाविध अन्य जिन धर्म के अनुमोदनादिक का आलंबन मिलने पर सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र पाकरप्राप्त करके उत्तरोत्तर शुभ भावनो के योगसे केवली होकर मोक्ष में जाते हैं, परंतु तापस के धर्मसे तो नहीं ही, क्योंकि वेषलिंग चाहे वह हो परंतु जीवन में धर्म तो सम्यग्दर्शनादि मोक्ष में जाने के लिए होना ही चाहिए। साथ ही इसी प्रकार भले ही वेष गृहस्थ का हो परंतु जन्मान्तरीय संस्कारोंसे स्वाभाविक बैराग को पाकर, सम्यक चारित्र को प्राप्त करके अन्तकृत् केवली होकर मोक्ष में जाता है।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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