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________________ * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर . जंबूदीवे चउरो, सयाइ वीसुत्तराई उक्कोसं / रयणाइ जहणं पुण, हुंति विदेहमि छप्पन्ना // 269 // [प्रक्षेपक गाथा 66] गाथार्थ-जंबूद्वीप में उत्कृष्टसे. 420 और जघन्यसे 56 रत्न महाविदेह के अंतर्गत होते हैं / / / 269 / / विशेषार्थ- उत्कृष्टपद में जंबूद्वीप में कुल 30 चक्रवर्ती एक साथ हो सकते हैं, अतः महाविदेह की बत्तीस विजयोंमेंसे 28 विजयों में अठाइस क्योंकि शेष चार विजयों में वासुदेवों का संभव है और एक भरतक्षेत्र में, एक ऐरवतक्षेत्र में इस तरह कुल 30 चक्रवर्ती होते हैं / एक एक चक्रवर्ती के 14 रत्न होनेसे 30x14=420 कुल रत्न होते हैं / जबकि भरत, ऐर वत में और विदेह की अन्य 28 (अठाइस ) विजयों में चक्रवर्ती नहीं होते, अंत में मात्र पुष्कलावती, वत्स, नलिनावती, वा इन चार विजयों की नगरी में जघन्यसे चार चक्रवर्ती होते हैं / (चार से न्यून चक्रवर्ती जंबूद्वीप में नहीं होते ) तब कुल ( 4414= )56 रत्न जघन्यसे जंबूद्वीप के महाविदेह में होते हैं / जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति में भी यही बात कही है / [ 269 ] ( क्षेपक गाथा 66) अवतरण-अब 'युद्धशूरा' वासुदेवों के कितने शस्त्रो-रत्नो हों? यह कहते हैं / चकं धणुहं खग्गो, मणी गया तह य होइ वणमाला / संखो सत्त इमाई, रयणाई वासुदेवस्स // 270 // गाथार्थ-विशेषार्थवत् / विशेषार्थ–१, सुदर्शन चक्र, 2. नंदक नाम का खड्ग तथा 3. मणि इन तीनों रत्नों का वर्णन पहले 267 वी गाथा में कहा गया है उसके अनुसार समझ लेना / मात्र चक्र को सुदर्शन नामसे पहचाना जाता है / / 4. धणुहं-धनुष, इसे शार्ङ्ग धनुष नाम का शस्त्र समझें / दूसरे किसीसे उठाया न जा सके वैसा यह धनुष बड़ा भारी, अद्भुत शक्तिवाला, जिसके टंकार मात्रसे शत्र सैन्य त्रस्त होकर पलायमान हो जाए ऐसा होता है / 5. गया-गदा, यह गदा चक्री के दंड रत्न जैसी महाप्रभावशाली, दूसरे किसीसे न उठाई जा सके ऐसी, अभिमानी शत्रुओं की भुजा के मद को तोड़ डालनेवाली और वलीष्ठ होती है /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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