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________________ * चक्रवर्ती के चौदह रत्नों के प्रमाण और वर्णन . 81 माथार्थ-विशेषार्थवत् / / / 265-266 / / विशेषार्थ-द्रव्यदेवादि पांच प्रकारके देवोंमें चक्रवर्ती नरदेव के रूप में परिचित है / जिस तरह देवलोक में प्रधानस्थान इन्द्रका, उस तरह सर्व मनुष्योंमें चक्रीका स्थान सर्वोच्च है और इसीलिए उन्हें देव शब्दसे संबोधित किया है / वे छः खंडके अधिपति बनते हैं / इसके सिवाय भरत के छहों खंड के कोटानुकोटी मानवों के रुप का संचय उसमें होता है अर्थात् वह सबसे सर्वोत्तम रुपवान होता है / उनके शरीर श्रेष्ठ सुवर्णवर्णी सुकोमल होते हैं / अन्य बहुत ऋद्धि-सिद्धियाँ होती हैं। इन सर्व ऋद्धिमें भी चक्रादि चौदह रत्नों की प्रधानता होती है / उन चौदह रत्नोंका स्वरुप इस तरह है। 1. चक्र, 2. छत्र और 3. दंड ये तीनों रत्नो व्यमि-वामप्रमाण अर्थात् प्रसारित उभय बाहुवाले पुरुष के दो हाथकी अंगुलियों के दोनों छोर के बीचका भाग [ = 4 हाथ ] प्रमाण सोच लेना / 4. चर्मरत्न केवल दो हाथ दीर्घ-लंबा है / 5. खड्ग रत्न बत्तीस अंगुल दीर्घ, 6. श्रेष्ठ सुवर्णकाकिणी रत्न चार अंगुल प्रमाण दीर्घ और दो अंगुलं विस्तीर्ण, 7. मणिरत्न चार अंगुल दीर्घ और दो अंगुल विस्तीर्ण, मध्यमें वृत्त और विस्तीर्ण, तथा छः कोनोंसे शोभित है / - इन सातों एकेन्द्रिय रत्नोंका माप चक्रवर्ती के औत्मांगुल से अर्थात् उसके अपने अंगुलमानसे जानें / ___ आठवाँ पुरोहितरत्न, 9 गजरत्न, 10 अश्वरत्न, 11 सेनापतिरत्न, 12 गाथापतिरत्न, 13 वार्द्धकीरत्न, 14 स्त्रीरत्न / इन सातों पंचेन्द्रिय रत्नोंका मान तत्काल वर्तित पुरुष, स्त्री और तियंचका जो मान उत्तम और प्रशस्त गिना जाता हो उस तरह होता हैं / इस तरह चक्रवर्ती के चौदह रत्नोंकी बात जानना / यहाँ सारे रत्नों का विस्तार, मोटाई अन्य ग्रन्थों से उपलब्ध न होनेसे मुख्यतया लंबाई ही बताई है / [265-266 ] ___388, व्यामो बाह्योः सकरयोस्ततयोस्तिर्यगनन्तरम् इत्यमरः // 389. यह मान मध्यम लिया है। अन्यथा अन्यत्र तो 50 अंगुल लंबा, 16 अंगुल चौडा और अर्धअंगुल बडा कहा है; और जघन्यमान 25 अंगुल का कहा है / अतः उक्त मान को मध्यम गिनना योग्य है। यहाँ जंबू०प्र०अनु० द्वार, वृहत्संग्रहणी वृत्तिकारादि मणि-काकिणी को, प्रमाणांगुल, आत्मांगुल और उत्सेधांगुल से मापने का कहते हैं, और प्रवचनसारोद्धार आदि ग्रन्थो सातों एकेन्द्रिय रत्नों को आत्मांगुल से मापने का कहते हैं। तत्त्व ज्ञानीगम्य / बृ. सं. 11
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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