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________________ * नरकगति विषयक द्वितीय भवनद्वार . लोले लोलावत्ते, तहेव थणलोलुए य बोद्धव्वे / बीयाए पुढवीए, इक्कारस इंदया एए // 224 // तत्तो तविओ तवणो तावणो ये पंचमो निदाघो अ / छ8ो पुण पज्जलिओ, उज्जलिओ सत्तमो निरओ // 225 // संजलिओ अट्ठमओ, संपज्जलिओ य नवमओ भणिओ। तइआए पुढवीए, एए नव होति निरइंदा // 226 // आरे तारे मारे, वच्चे तमए य होइ नायवे / खाडखडे अ खडखडे, इंदय निरया चउत्थीए // 227 / / खाए तमए य तहा, झसे य अंधे अ तह य तमिसे अ / एए पंचमपुढवीए, पंच निरइंदया हुंति / / 228 // हिमवद्दललल्लके, तिन्नि य निरइंदया उ छट्ठीए / एको य सत्तमाए, बोद्धव्यो अप्पइट्ठाणो // 229 // [प्रक्षेपक गाथा-४७ से 56 ] गाथार्थ–१ रत्नप्रभा पृथ्वी के पहले नरक के प्रथम प्रतर मध्य में दिशा, विदिशागत नरकावासाओं की सर्व पंक्तियों के बीच मुख्य ‘सीमन्त' नामक नरकावास आया हुआ है, दूसरे प्रतर पर रोरुक, तीसरे प्रतर पर भ्रान्त, चौथे प्रतर पर उद्भ्रान्त, पाँचवें प्रतर पर संभ्रान्त, छठे प्रतर पर असंभ्रान्त, सातवें प्रतर पर विभ्रान्त नरकेन्द्र, आठवें प्रतर पर तप्त, नौवें प्रतर पर शीत, दसवें प्रतर पर वक्रान्त, ग्यारहवें प्रतर पर अवक्रान्त, बारहवें प्रतर पर विक्रान्त, और तेरहवें प्रतर पर रोरुक, नरकेन्द्र प्राप्त होता है / इस प्रकार प्रथम रत्नप्रभा में अप्रिय नामोंवाले ये तेरह नरकेन्द्र आवास आये हुए हैं / [ 220-222 ] 2 द्वितीय पृथ्वी के प्रतरों के बीच में अनुक्रम से 1 स्तनित, 2 स्तनक, 3 मनक, 4 वनक, 5 घट्ट, 6 संघट्ट, 7 जिह्व, 8 अपजिह्व, 9 लोल, 10 लोलावत और 11 स्तनलोलुप जाने / . इस प्रकार दूसरी शर्कराप्रभा पृथ्वी में स्थित दूसरे नरक के ग्यारह प्रतरों के बीच ये ग्यारह नरकेन्द्र आवास आये हुए हैं / [ 223-24 ] 365-- पंचमो य निट्ठिो / 366- ललक्के / 367- अप्पइट्ठाणो य नामेण /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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