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________________ 42 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [गाथा-५-६ किया, अनेक प्रकारकी कला-कारीगरियाँ (शिल्प) उस कालमें प्रथम उन्हीं प्रभुने गृहस्थावस्थामें जगत्को दिखलाई। यह अवसर्पिणी आश्रयी सर्व प्रकारका प्रथम व्यवहार उन्होंने ही प्रकट किया और उन्होंने उत्तम नैतिक नियमों और आचरणोंका सारे जगत्के समक्ष प्रवर्तन किया। हजारों प्रकारके व्यवहार, सर्व प्रकारके गणित, कुम्भकारकी कलाएँ, मूल पांच प्रकारके ( उत्तर भेदसे सौ) शिल्प आदि वर्तमानमें जो जीवनोपयोगी वस्तुएँ हम देखते हैं वे सभी तथा सर्व प्रकारकी मूल भाषा पलिपियाँ भी उनसे (पुत्री-ब्राह्मी-सुन्दरीसे) प्रवर्त्तमान जान / अवसर्पिणीके तीसरे आरेके अन्तमें तीर्थंकरदेवकी उत्पत्तिका प्रारम्भ होता 48 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32.33 34 35 रसमन्त्रयन्त्रविषखन्टगन्धवादाश्च // 2 // प्राकृतसंस्कृतपैशाचिकाऽपभ्रंशाः स्मृतिः पुराणविधी / सिद्धान्ततर्कवैद्यक 36 37 38 38 40 41 42 43 44 45 46 47 वेदाऽऽगमसंहितेतिहासाश्च // 3 // सामुद्रिक विज्ञानाऽऽचार्यकविद्या रसायनं कपटम् / विद्यानुवादो दर्शन-संस्कारी 48 50 55 52 53 54 55 56 धूर्त्तशम्बलकम् // 4 // मणिकर्मतरुचिकित्सा, खेचर्यमरीकलेन्द्रजालं च / पातालसिद्धियन्त्रक-रसवत्यः सर्वकरणी च // 5 // 57 58 59 60 61 62 63 64 65 प्रासादलक्षणं पण-चित्रोपललेपचर्मकर्माणि / पत्रच्छेदनखच्छेद-पत्रपरीक्षा वशीकरणम् // 6 // काष्ठघटनदेशभाषा, 68 69 70 71 72 गारुडयोगाङ्गा धातुकर्माणि / केवलिविधिशकुन रुते..., इति पुरुषकला द्विसप्ततिज्ञेयाः // 7 // 64. स्त्रियोंकी चौसठ कलाएँ-ज्ञेया नृत्यौचित्ये, चित्रं वादित्रमन्त्रतन्त्राश्च / घनवृष्टिफलाकृष्टी, 8 10 11 12 13 14 15 16 17 18 18 . संस्कृतजल्पः क्रियाकल्यः / / 1 // ज्ञानविज्ञानदम्भाबुस्तम्भा गीततालयोर्मानम् / आकार-गोपनारामरोपणे काव्यशक्ति२१ 22 23 24 25 26 27 28 वक्रोक्ती // 2 // स्त्री-नरलक्षणे गजहयपरीक्षणे वास्तुसिद्धिपटुबुद्धी / शकुनविचारो धर्माचारोऽञ्जनचूर्णयोर्योगाः // 3 // 28 30 31 32 33 34 35 36 गृहिधर्मसुप्रसादनकर्म कनकसिद्धिवर्णिकावृद्धी। वाक्पाटवकरलाधवललितचरण-तैलसुरभिंताकरणम् // 4 // भृत्योपचार 38 8 40 45 42 43 44 45 46 47 गेहाचारी. व्याकरणपरनिराकरणे / वीणानाद वितण्डावादोऽङ्कस्थितिजनाचाराः // 5 // कुम्भभ्रमसारिश्रमरत्नमणिभेदलिपि૪૮ 49 50 51 52 53 54 55 56 परिच्छेदाः। वैद्यक्रिया च कामाविष्करणं रन्धनं चिकुरबन्धः // 6 // शालीखण्डन मुखमण्डने, कथाकथनकुसुमसुग्रथने / 57 58 59 60 2 53 वरवेषसर्वभाषा-विशेषवाणिज्यभोज्यानि // 7 // अभिधानपरिज्ञानाऽऽभरण यथास्थान-विविधपरिधाने / अन्त्याक्षरिका प्रश्नप्रहेलिका स्त्रीकलाश्चतुःषष्ठिः // 8 // 65. 'हंसलिवी भूयलिवी, जक्खा तह रक्खसी अ बोधव्वा / उड्डी जवणि तुरुक्की, कीरी दविडी या सिंधविय // 1 // मालविणी नडि नागरि, लाडलिवी पारसी य बोधव्वा / तह अ निमित्ती य लिंबी चाणक्की मूलदेवी य // 2 //
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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