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________________ * 8 . * श्रीबृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर . 2 गति--उन नारकों की गति रासभ (गधा) ऊँट आदि की कुगति के समान अत्यंत दुःखपूर्ण और वह भी तपे हुए लोह पर कदम रखने से भी अधिक कष्टदायक है। 3 संस्थान-उनका शरीर एकदम कुब्ज-हुंडक संस्थानवाला दिखायी पड़ता है। अतः कटे हुए पखोंवाले अंडजोत्पन्न पंछी के समान और देखते ही उद्वेग कराये ऐसे कुरूप दिखायी देते हैं। 4 भेद-कुण्डादि से (कुंभी इत्यादि से) नारकी के शरीर-पुद्गलों का विच्छेदन (विभाजन) यह शस्त्र की पैनी धारसे कोई हमारा शरीर काटे या खिंचे और हमें दुःख हो इस से भी अधिक दुःखदायी यह विमोचन (निकाल फेंकना, दूर करना ) लगता है। 5 वर्ण-इनका वर्ण एकदम निकृष्ट, अत्यंत भीषण (भयानक) और मलिन है / क्योंकि उनके उत्पन्न होने के नरकावास बिना कपाट-खिडकी तथा बिना जालीवाले, चारों दिशाओंसे भययुक्त और घने अंधकारमय, श्लेप्म (कफ), मूत्र, विष्टा, स्रोत, मल, रुधिर, वसा, भेद और पीब (मवाद) इत्यादि समान अशुभ पुद्गलों से पोते हुए भूतल . प्रदेशवाले, और श्मशान (मसान, मरघट) की तरह मांस, पूति-केश, अस्थि, नाखून, दाँत, चमडी इत्यादि अशुचि (अपवित्र, नापाक) तथा अप्रिय पुद्गलयुक्त आच्छादित भूमिवाले होते हैं। 6 गंध-इनकी गंध सडे हुए कुत्ते, लोमडी, बिल्ली, नेवलें, सर्प, चूहे, हस्ती, अश्व तथा गाय इत्यादि के मृत शरीर की जो दुर्गध होती है उससे भी अधिक अशुभतर होती है / 7 रस-नीमकी 'गणो' आदिसे भी अधिक कडुआ होता है / स्पर्श-इनका स्पर्शमात्र अग्नि, बिच्छू, कौवच इत्यादि के स्पर्श से भी अधिक भयंकर एवं दुखदायी होता है। वहाँ सातों पृथ्वियों का स्पर्श अमनोज्ञ है तथा वायु और वनस्पतियों का स्पर्श भी उनके लिए तो जलनरूप ही होता है / 9 अगुरुलघु-उनका नतीजा अगुरुलघु होनेपर भी तीव्र दुःख के आश्रय समान अति व्यथाकारक है। 10 शब्द-दुःख से पीडित एवं कुचले हुए होने के कारण अत्यंत दुःखद आक्रंदरूप विलाप करने से उन के शब्द करुणा उपजाते है /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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