SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 394
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 394 ] बृहत्संग्रहणी रत्न हिन्दी वाचकोंके लिए एक अगत्यकी स्पष्टता 'बृहत्संग्रहणी'-'संग्रहणीरत्न 'से जानेवाले ग्रन्थके गुजराती भाषान्तरसे कसया गया हिन्दी अनुवाद लगभग 100 फर्मों जितना हो गया। अब अगर प्रकाशनार्थ एक प्रेसमें दें तो यह काम कब पूरा हो ? इस बातको ध्यानमें रखते हुए यह निर्णय लिया कि इसे शीघ्र प्रकाशनार्थ दो प्रेसों में कार्यका बटवारा कर देना हितकर होगा। अतएव सीरिअल नंबर निश्चित करना सम्भव नहीं था। प्रारम्भके प्रथम फर्मेसे 50 फर्मों तकका काम सोनगढ़के कहान प्रेसमें और दूसरा एकसे पैंतालीस फर्मों तकका काम अहमदाबादके भरतप्रेसमें शुरू कराया / एक ही ग्रन्थ एक साथ दो प्रेसोंमें प्रारम्भ करवाने पर दूसरे विभागका भी पेज नंबर एकसे प्रारम्भ करना पड़ा है। तो इस प्रकार दूसरे नरकगति अधिकारसे शुरू होनेवाले पेजको एक नंबर देना पड़ा। पूर्वार्धके 50 फर्मे अर्थात् पेज नं. 1 से लगाकर 393 तक हुए और उत्तरार्धके 45 फर्मे अर्थात् पेज नं. 1 से लगाकर 360 हुए / दोनोंको मिलानेसे 50 + 45 = 95 फर्मोंके कुल मिलाकर 753 पृष्ठोंका मुद्रण हुआ / एक ही ग्रन्थमें दो विभाग करने पड़े, तद्हेतु यह खुलासा किया है। -प्रकाशक
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy