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________________ तीन प्रकारका आहारका स्वरूप ] गाथा-२८३ [363 ___ अवतरण-पूर्व १७९-८०वीं गाथामें 'श्वासोश्वास की व्याख्या की थी, परन्तु आहारकी व्याख्या नहीं की थी। अब यह 'आहार' कौन-सी चीज है और इनके प्रकार कितने हैं ? यह बताते हैं। सरिरेणोया आहारो, तयाइ-फासेण लोम आहारो / पक्खेवाहारो पुण, कावलिओ होइ नायव्वो / / 183 // गाथार्थ-ओजाहारका ग्रहण शरीर द्वारा, लोमाहारका ग्रहण त्वचाके स्पर्श द्वारा तथा प्रक्षेपाहारका ग्रहण कवल रूपमें लिया जाता है / // 183 // विशेषार्थ-जीवका प्रयत्नसे औदारिकादि शरीरके लिए औदारिक पुद्गलोंका पाँचों प्रकारके शरीर द्वारा जिसे ग्रहण करता है उसे 'आहार' 32 कहा जाता है / ___उत्पत्तिक्षणके बाद (औदारिकादिकी अपेक्षासे ) प्रतिक्षण नष्ट होनेका जिसका स्वभाव बना रहता है, उसे 'शरीर' कहा जाता है / ये शरीर 1. औदारिक, 2. वैक्रिय, 3. आहारक, 4. तैजस और 5. कार्मण इत्यादि भेदयुक्त पाँच प्रकारके होते हैं। आहारग्रहण ओजस् , लोम और प्रक्षेप (कवलाहार ) इन तीन रीतोंसे होता है / ओजसूआहार-ओजस शब्दकी परिभाषा तीन प्रकारसे की गयी है। (1) ओजस् अर्थात् 32 उत्पत्तिप्रदेशमें रहे हुए आहार योग्य पुद्गल (2) तैजस शरीर और (3) तेजस शरीर द्वारा ग्रहण किया जानेवाला आहार / संक्षिप्त परिभाषामें देखा जाये तो उत्पन्न होनेके बाद पहली ही 3२८क्षणमें (एकेन्द्रिय शरीर नहीं है, इसलिए) सिर्फ तैजस (-कार्मण) शरीर द्वारा ही जिसे ग्रहण किया जाता है उसे ओजाहार कहते हैं। - किसी भी उत्पत्तिस्थानमें उत्पन्न होने के प्रथम समय पर (पाँच प्रकारी शरीरमेंसे सिर्फ) जीव तैजस-कार्मण आदि दो शरीरवाला ही होता है और इसके बादके दूसरे समयसे जीव 326. दिगम्बरीय तत्त्वार्थ राजवार्तिकमें औदारिक, वैक्रिय और आहारक ये तीन शरीरोंको तथा आहार अभिलाष आदिके कारणरूप छः पर्याप्तिके योग्य पुद्गलोंका ग्रहण वह आहार ऐसा कहा है। 327. जोएण कम्मएणं, आहारेइ अणंतरं जीवो, तेण परं मीसेणं, जाव सरीरस्स निष्फत्ती // तेएण वा कम्मएणं इति पाठां. [ सूत्र कृ. नि.] - 328. लोकप्रकाश सर्ग 3, श्लो. 25
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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