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________________ 36 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [गाथा-५-६ निकालना और निकालते निकालते जब वह कुआँ खाली हो जाए तब एक 'सूक्ष्मअद्धापल्योम' होता है। ऐसे दस कोडाकोडी सूक्ष्मअद्धापल्योपमसे एक 4. 'सूक्ष्मअद्धासागरोपम' होता है। इस सूक्ष्म-अद्धा-पल्योपम अथवा सागरोपम द्वारा नरक आदि चारों गतियों के जीवोंकी ५२आयुःस्थिति [ भवस्थिति ] तथा जीवोंकी स्वकाय-स्थितियाँ आदि मापी जाती हैं। बादर-क्षेत्र पल्योपमम् // 5 // जिस मापके बालापोंको सात बार, आठ-आठ खंड करनेसे कुआँ भरा है, उसी पल्यमें स्थित प्रत्येक रोमखण्डोंमें, असंख्य असंख्य आकाश प्रदेश अन्दर और बाहरसे भी स्पर्श करके रहे हैं और अस्पर्श रूपमें भी रहे हैं, उनमें स्पर्श करके रहे हुए. आकाशप्रदेशोंकी अपेक्षा अस्पृष्ट आकाशप्रदेश असंख्यात हैं। उन बालात्रोंसे स्पृष्टबद्ध आकाशप्रदेशोंको प्रत्येक समय एक-एककर बाहर निकालें और निकालते-निकालते स्पर्शित सर्व आकाशप्रदेश जब खाली हो जाएँ तब उतना समय बादर-क्षेत्र-पल्योपम कहा जाए। यह पल्योपम असंख्य कालचक्र प्रमाण है। ऐसे दस कोडाकोडी बादरक्षेत्र पल्योपमसे एक 5. 'बादरक्षेत्रसागरोपम' होता है। इस बादर पल्योपम-सागरोपमके कथनका प्रयोजन सूक्ष्मक्षेत्रपल्योपम समझनेके लिए ही है। : सूक्ष्म-क्षेत्र पल्योपमम् // 6 // सूक्ष्मबादरक्षेत्रपल्योपमके प्रसंग पर जिन प्रकारके बालात्रोंसे उक्त प्रमाण पल्य भरा था, उसी प्रकारसे भरे पल्यमें प्रत्येक रोमखण्डोंके अन्दर स्पर्श किये हुए और नहीं स्पर्श किये आकाश-प्रदेशका विवरण किया गया था। वर्तमान प्रसंगमें इतना विशेष समझना चाहिये कि बालाग्र इतने तो खचाखच भरे हुए हैं कि, वे प्रचण्डवायुसे भी उड़ नहीं सकते, अगाध ज्ञानदृष्टिवाले त्रिकालदर्शी ज्ञानी पुरुषोंने यथार्थ देखा है और इसलिए यथार्थ प्रकाशित किया है। निबिड रीतिसे भरे और असंख्यबार खण्डित करके कल्पित उन बालानों में भी एक बालाग्रसे दूसरा बालाग्र, दूसरेसे तीसरा, ऐसे सभी के अन्तरालमें असंख्यात असंख्यात आकाशप्रदेश हैं। अतः सचमुच देखे तो स्पृष्टके बदले अस्पृष्ट आकाश प्रदेश बहुत ( असंख्यगुणा ) मिल जाएँगें। इस तरह स्पृष्टास्पृष्ट आकाश प्रदेश दो प्रकारके हुए, एक स्पर्शित और दूसरे अस्पर्शित। दोनों प्रकारके आकाशप्रदेशों में से प्रतिसमय स्पृष्ट और अस्पृष्ट आकाशप्रदेशको कम करते हुए जब वह पल्य ज्ञानीकी दृष्टिसे स्पृष्टास्पृष्ट दोनों प्रकारके आकाशप्रदेशोंसे निःशेष हो जाय तब ‘सूक्ष्मक्षेत्रपल्योपम' होता है / 52. जिसके लिये कहा है कि-" एएहिं सुहुमअद्धापलिओवमसागरोवमेहि नेरइयतिरिक्खजोणियमणुयदेवाणं आउयाई माविजंति" इति /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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