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________________ श्वासोच्छ्वासकी गिनती ] गाथा-१७८ [357 समाधान- इसके समाधानमें यह समझना कि-निःश्वास तो उच्छ्वासके अन्तर्गत आ ही जायेगा। क्योंकि निःश्वासके बिना उच्छ्वासका ग्रहण होता ही नहीं है। दूसरी महत्ता-मुख्यता तो ' उच्छ्वास 'की ही होती है, निःश्वासकी नहीं। प्रथम आहार मर्यादाको बताते हुए ग्रन्थकार कहते हैं कि दस हजार सालकी जघन्य आयुष्यको धारण करनेवाले जो ( भवनपति ) देव हैं, ये चतुर्थ भक्त ( इन्हें एक अहोरात्रवाचक माना जाता है, इसलिए )-एकांतर पर आहारको ग्रहण करते हैं। वे हमारी तरह कवलाहारी न होनेसे आहार मात्रकी अभिलाषा होते ही उपस्थित इच्छाके अनुकूल, मनोज्ञ सर्वेन्द्रियोंके आह्लादक ऐसे आहारके पुद्गलोंका परिणमन शुभ कर्मानुभावसे इन्हें हो जाता है। (इसका विस्तृत स्वरूप बादकी गाथाओंमें बताया जायेगा) और तृप्त होते ही परमानन्दकी अनुभूति करते हैं। उसके बाद वे स्वक्रीड़ादि कार्यमें मग्न हो जाते हैं। साथ ही ये देव सात स्तोक काल पूर्ण होनेके बाद एक बार ही उच्छ्वास लेते हैं। स्तोक कब बनता है ? तो कोई नीरोगी-स्वस्थ सुखी युवान जब सात बार श्वासोच्छ्वास लेनेकी क्रिया करता है तब एक स्तोककालप्रमाण होता है। ऐसे सात स्तोक (49 श्वासो०) पर ये देव एकबार ही श्वासोच्छ्वासकी क्रिया करते हैं। इसके बाद आनन्दके साथ निराबाधपनसे वर्तित पुनः एकांतर होने पर आहार ग्रहण करते हैं तथा मध्यमें सात स्तोक पूर्ण होते ही फिरसे उच्छ्वास ग्रहण होता रहता है। ... टिप्पणी:-'निसासूसास' शब्दसे टीकाकार निःश्वासोच्छ्वास लेनेका सूचन करते हैं। अन्य ग्रन्थकार भी यह अर्थ ही बताते हैं। लेकिन यहाँ पर श्वासोच्छ्वासका मतलब छातीमें उत्पन्न धड़कनयुक्त श्वासोच्छ्वास ही मानना है तो प्रस्तुत गिनतीमें इसका कोई भी मेल बैठता ही नहीं है। यह कथन तद्दन असंगत बन जाता है, क्योंकि एक मुहूर्त अर्थात् 48 मिनटमें 3773 बार श्वासोच्छ्वास मान कहा। इस हिसाबसे एक मिनटमें 78 से कुछ अधिक संख्या बनती है; जब कि एक मिनटमें कोई सशक्त मनुष्य अधिकसे अधिक पन्द्रह बार श्वास लेता है, जो प्रत्यक्षसिद्ध बाबत है। और यह संख्या बढ़कर एक मिनटमें २५....बनती है तो मनुष्यकी मृत्यु होती है, वह भी अनुभव सिद्ध घटना है। इसी कारण ग्रन्थकारके कथनका कोई भी मेल एवं अर्थ बनता न हो तब उनके आशयको सफल बनाने के लिए श्वासोच्छ्वासकी परिभाषाको अलग ही अर्थ या रीतिसे घटानेसे यथार्थ संगति निकाल सकते हैं। . इससे यहाँ श्वासोच्छ्वासको 'छातीकी धड़कन 'के अर्थमें न घटाते हुए हाथकी नाडीकी धड़कन 'के अर्थमें घटाएँ तब गिनती बराबर संगत बैठ जाती है, फिर भी इस बाबतमें अभ्यासी स्वयं अधिक सोचे-विचारें।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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