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________________ समयादिकालका स्वरूप गाथा 3-4 [33 36 हजार ] रोमखंड केवल पल्यकी एक योजन लंबी श्रेणिमें समा जाएं जब कि दूसरी अनेक श्रेणियाँ भरें तब मात्र कुएँका तलभाग ही ढंका जाए। अतः उस समग्र तलवेको बालापोंसे संपूर्ण भरनेके लिए 1610612736000 की उक्त संख्याका वर्ग करें अर्थात् पुनः उतनी ही संख्यासे गुने तब 2594073385365405696 रोमखंडोंसे केवल तलया ही पूरित हों। इतनी बाल-सख्यासे एक ही प्ररतररचना हुई कही जाय / पूर्वोक्त संख्याप्रमाण दूसरे बालोंकी परतोंको भरें तो समग्र कुआँ भर जाए। यह गिनती 'घनवृत्त' करनेकी थी, परंतु यहां घनचौरस कुएँकी हुई / तो अब उस रोमखंडको उतने ही रोमखंडोंसे पुनः गुने तो 4178047632588158427784540256000000000 इतने रोमखंडोंसे 'घनचौरस' कुआँ भर जाए। 'घनवृत्त' कुआँ भरनेके लिए प्रस्तुत संख्याको 19 ४"गुनी करके 24 से भ.ग करे तो 33 करोड़, 7 लाख, 62 हजार, 104 कोडाकोडी कोडाकोडी; 24 लाख, 65 हजार, 625 कोडाकोडी कोडी, 42 लाख, 19 हजार, 960 कोडाकोडी, 97 लाख, 65 हजार, 600 करोड़ 48(330762104 कोडाकोडी कोडाकोडी 2465625, कोडाकोडी कोडी,, 4211960 कोडाकोडी, 9753600,0000000) इतने बालापोंकी राशियोंसे सम्पूर्ण कुआँ भर जाए / इन बालोंको खचाखच भरना और उन्हें ऐसा निबिड भरना की उन बालाओंको अग्नि जला न सके, पानी भिगो न सके और चक्रवर्ती जैसे कि महासेना उस बालाग्र पर स्पर्श करती हुई निकल जाए, तो भी वह बालाग्र झुकता नहीं (दबता नहीं) इस तरह बालात्रोंसे ठसाठस भरे हुए कुएँ मेंसे हरएक समय पर एकएक बालाग्र समुद्धृत करना अर्थात् निकालना, ऐसे समय समय पर बालान निकालते हुए जितने समयमें वह पल्य सर्वथा बालाग्रसे रहित हो जाए उतने समयको 'बादर उद्धारपल्योपम' कहा जाए / ____कुएँके बाहर उद्धार करनेकी मुख्यतासे यह नाम दिया गया है। इस पल्योपमका काल मान संख्यात समयमात्र है, क्योंकि एक एक समय पर बालाग्र निकालना है / बालापोंकी संख्या मर्यादित ही है और निमेष-मात्रमें असंख्यात समय हो जाता है। इस निमेष-कालसे 47. शतक कर्मग्रन्थ टीकामें चौरसका वृत्त करनेके लिए इस विषयमें 19 से गुना करके 22 से भाग देना बताया है। 48. जिसके लिए लोकप्रकाशमें कहा है कि त्रित्रिखाश्वरसाक्ष्याशावाईयक्ष्यब्धिरसेन्द्रियाः / विपञ्चचतुर्येकां-कांकषट्खांकवाजिनः // 1 // पञ्च त्रीणि च षट् किञ्च नवखानि ततः परम् / आदितः पल्यरोमांशराशिसंख्यांक संग्रहः // 2 // बृ. सं. 5 48. /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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