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________________ वासठ इन्द्रक विमानोंके नाम] गाथा 128-133 / 303 अथवा ध्यानमें यदि छंदठका तप और २८५सप्तलव प्रमाण ध्यान अधिक हुआ होता तो वे तद्भवसे सीधे मोक्षमें ही चले गए होते, परन्तु उसी प्रकार न होनेसे उपशम श्रेणीमें ही कालधर्म पाकर शिवनगर-मोक्ष पहुँचने में विश्रामरूप अनुत्तरदेवलोकमें एकावतारी रूपमें उत्पन्न होते हैं / थोड़ा-सा कम ध्यान-तप करनेके परिणामस्वरूप वहाँसे च्यवित होकर उनको पुनः गर्भावासका महान् दुःख फिरसे एक ही बार सहन करना पड़ता है, क्योंकि वहाँसे-देवगतिसे च्यवकर ( अवसान होने पर, स्थानभ्रष्ट होकर ), उत्तम कुलमें जन्म लेकर, वहाँ संयम स्वीकार कर उसी ही भवमें मोक्षमें चले जाते है। ये देव निश्चयसे सम्यक् दृष्टिवाले होते हैं। और वहाँ उनके उपपात शय्या पर जो चँदवा (चंदोवा) आदि होते हैं उनके ऊपर अनेक भाँतके बत्तीस बत्तीस मन तक वननवाले बड़े-बड़े मोती जो लटकते है, वे सब पवनके योगसे. जब आपसमें टकराते हैं तब उनमेंसे मधुरध्वनियाँ-नाद नीकलते हैं। वे ध्वनि उनको अनन्तगुण आनन्द देती हैं / [ 128 ] अवतरण-अब सात गाथाओंसे बासठ इन्द्रक विमानोंके नाम बताते हैं। उडु-चंद-रयय-बग्गू-वीरिय-वरुणे-तहेव आणंदे / बंभे कंचण-रूइले [रे ], वं (च) चे अरुणे दिसे चेव // 129 / / 'वेरुलिय रुयग-रुइरे, अंके फलिहे तहेव तवणिज्जे / मेहे अग्ध-हलिद्दे, नलिणे तह लोहियक्खे य // 130 / / वहरे अंजण-वरमाल- * अरिढे तह य देव-सोमे अ / X मंगल-बलभद्दे अ, चक्क-गया-सोस्थि गंदियावत्ते // 131 / / आभंकरे य गिद्धि, केऊ-गरुले य होइ बोद्धव्वे / / बंभे बंभहिए पुण, बंभोत्तर-लंतए चेव / / 132 // महसुक्क-सहसारे, आणय तह पाणए य बोद्धव्वे / +पुप्फेऽलंकारे अ, आरणे (य) तहा अच्चुए चेव / / 133 // २८५.-जिसकी गवाही उप-रत्ना०की " लवसत्तहत्तरीए" 'सत्तलवाजइआउं तथा सव्वट्ठसिद्धनाम' गाथाएँ तथा भगवतीके 'तणुकेवइयं' इत्यादि सूत्र देते हैं, साथ ही पं. वीरविजयकृत चौसठ प्रकारी पूजामेंसे तीसरी वेदनीयकर्मकी पांचवीं पूजाके भाषा-काव्यमें यह बात सरस रूपसे वर्णित की है / * रिठे देवे य सोममंगलणा बलभद्दे चक्कगया सोवत्थिय नंदयावत्ते / पाठां० _x ‘णंगल'-लाङ्गलः इति पाठां० / .....+ पुष्फमलंकारे आभरणे, तह अच्चुए चेव / /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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