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________________ 300 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [गाथा 125-126 तकके विमानोंका पार पानेके लिए प्रत्येक गतिको पंचगुनी करके उतने योजनप्रमाण गतिसे चलने लगे तो पार पाता है / नौ अवेयकके विमान सातगुनी गतिसे चलने लगे तो पार पावे, और अनुत्तरके चार विमानोंका पार पानेको नौगुनी गति करे तब पार पाते हैं। - // 125-126 // विशेषार्थ-पूर्व गाथामें बताया कि देव उक्त चारों गतिके प्रमाणसे चलने पर भी विमानोंका पार नहीं पा सकते / तब अब क्या करें तो पार पावे ? इसके लिए निम्न अनुसार समझना / 1. 'चंडा' गतिके एक कदममें होते 283580 यो० यो० प्रमाणको त्रिगुना करने पर 850740 यो० भाग प्रमाण प्राप्त होता है। उतने प्रमाणवाला कदम भरता हुआ कोई एक देव पहले चार देवलोकके विमानविस्तारको मापने लगे तो 6 मासमें कुछ विमानोंका पार पा सकता है। 2. 'चवला' गतिके एक कदममें होते 472633 यो० 30 यो० प्रमाणको त्रिगुना करनेसे 141790 यो० 3: भाग प्रमाण होता है / यदि कोई एक देव ऐसे महत्प्रमाणवाला एक ही कदम दूर दूर रखता हुआ पहले चार देवलोकगत विमानोंकी. लम्बाई मापनी शुरू करे तो कुछ विमानोंका पार 6 मासमें पाता है / 3. 'जयणा' गतिके 661686 यो० 54 योजनप्रमाणको त्रिगुना करनेसे 1985060 यो०४२ भाग होता है। इतने प्रमाणका कदम भरता हुआ कोई एक देव पहले चार देवलोकगत विमानोंके आभ्यन्तर परिधि (घेरा)को मापे तो 6 मासमें कतिपय विमानोंको पूर्ण करे / 4. 'वेगा' गतिके आए हुए 850740 यो० योजन प्रमाणको त्रिगुना करनेसे 2552220 यो 14 भाग प्रमाण प्राप्त होता है। इतनेसे कदम भरता हुआ देव चार देवलोकगत कतिपय विमानोंके बाह्य परिधिको 6 मासमें पूर्ण करता है। तत्पश्चात् पाँचवें कल्पसे लेकर अच्युत कल्प तकके कल्पगत विमानोंका पार पानेको चंडा-चवलादि प्रत्येक गतिको पंचगुनी करके विमानका विष्कंभ, आयाम, आभ्यन्तर परिधि तथा बाह्य परिधिको यथासंख्य पूर्ववत् 6 मास तक आए प्रमाण द्वारा मापने लगे तो कतिपय विमानोंका पार पाते हैं। साथ ही नवनवेयकके विमानोंका पार पानेके लिए पूर्वोक्त गतिमानको सातगुना करके चलने लगे तो पार पाते हैं। विजय-विजयवन्त-जयन्त-अपराजित इन चार अनुत्तर विमानोंका पार पानेके
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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