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________________ 290 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [गाथा 109-111 अत्र 2 शेष रहे ऐसी संख्या पाँच बार 238 - 238 - 238 + 9-+ 5 - + 0 है जिससे कुल 10 संख्या हुई हैं, उनमेंसे उक्त कथन अनुसार 5 त्रिकोणमें और 5 चौकोनमें गई, 247 -243 - 238 x 4 - x 4 -44 एक शेष चार बार है वह त्रिकोणमें ही जाए अतः (5 + 4 ) 9 त्रिकोणमें और पाँच चौकोनमें और 988 - 972 - 952 त्रि० चौ० + 13 इन्द्रक इन्द्रक सं. वृत्तमें जोडी / 965 वृत्त इस तरह अन्य प्रत्येक कल्पमें करनेसे इष्ट 27 संख्या प्राप्त होगी / जो संख्या .. यन्त्रमें दी गई है। 3. समग्र निकायमें त्रिकोणादि विमानसंख्या समग्र निकायाश्रयी त्रिकोणादि संख्या लानेका प्रबल करण ध्यानमें न आनेसे जणाया भी नहीं है / सामान्यसे प्रत्येक कल्पकी संख्याओंका जोड़ करनेसे समग्र निकायकी त्रिकोणादि संख्या आ सकती है, जो यन्त्रमें दी है / यन्त्र 291 पृष्ठमें है / [ 109-10] . अवतरण-अब उस प्रत्येक कल्पगत विमानमें रहनेवाले देवोंको पहचाननेके लिए चिह्न दर्शाते हैं। कप्पेसु य मिय महिसो, वराह-सीहा य छगल-सालूरा / हय-गय-भुयंग-खग्गी-वसहा-विडिमाइं चिंधाई // 11 // [प्र. गा० सं. 35] गाथार्थ-विशेषार्थवत् / / 151 / / विशेषार्थ-पहले भवनपत्यादि निकायोंकी जानकारीके लिए जिस तरह चिह्न दिखाये हैं, उसी तरह वैमानिक निकायमें पहले सौधर्मकल्पके देवोंको पहचाननेके लिए उनके मुकुटमें मृग (हिरन )का चिह्न है, दूसरे ईशान कल्पके देवोंको पहचानने के लिए भैंसेका चिह्न, तीसरे कल्पगत देवोंके लिए सूअर (भुंड )का, चौथे कल्पमें सिंहका, पाँचवें कल्पमें बकरेका, छठे कल्पमें मेंढकका, सातवें कल्पमें घोडेका, आठवेंमें गज ( हाथी) का, 278. यहाँ कल्ययुगलोंके विषयमें दूसरी तरहसे वृत्तकी तीन आवलिका और त्रिकोण चौकोनकी दो दो आवलिका गिनकर एक ही दिशावर्ती वृत्तकी कुल संख्याको तीन आवलिकासे गुना करके उस कल्यवर्ती इन्द्रक संख्याको मिलानेसे कुल वृत्तसंख्या दक्षिणेन्द्रकी आती है, तथा एक ही दिशावर्ती त्रिकोण-चौकोन विमान संख्याको दो दो आवलिक पंक्तियोंसे गुना करनेसे इष्ट संख्या प्राप्त होगी /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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