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________________ 260 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [गाथा 86-90 अब मण्डल पंद्रह होनेसे 15 मण्डल विषयक विमान विस्तारके प्रतिभाग करनेके लिए विमान अथवा मण्डलकी इकसठवें 56 भागको चौड़ाईको सातसे गुननेसे 392 भाग आते हैं। ये पंद्रह बार करनेसे 392415=5880 प्रतिभाग विमान विस्तारके आए। पूर्वके चौदह आंतरेके 212226 जो चूर्णिभाग हैं उनमें इन पंद्रह मण्डल विस्तारके आए कुल 5880 प्रतिभाग जोडनेसे 218106 सर्व क्षेत्रके सातवें भाग आए उनके इकसठवें भाग करनेके लिए सातसे भागा करनेसे 31158 आए, उनके योजन बनानेके लिए इकसठसे भागनेसे (बटा करनेसे ) कुल चन्द्रका जो 510 यो० 48 भागका चारक्षेत्र कहा है वह बराबर आ जाएगा / इति चारक्षेत्र प्ररूपणा // 2. चन्द्रमण्डलोंकी अन्तर-निस्सारण रीति प्रथम 510 यो०४६ भागका जो चारक्षेत्र उसके इकसठवें भाग करके जो संख्या प्राप्त हो उसमेंसे, चन्द्र के मण्डल 15 होनेसे पन्द्रह बार विमान विस्तारके इकसठवें भाग करके, पूर्वोक्त चारक्षेत्र प्रमाणमेंसे कम करनेसे जो संख्या शेष रहे वह केवल अन्तरक्षेत्रकी (क्षेत्रांश गिनती) आई समझना। उस अन्तरक्षेत्र-क्षेत्रांश संख्याको प्रत्येक मण्डलका अन्तर निकालने के लिए 14 से बटा करके प्राप्त होती संख्याके योजन करें, जिससे प्रत्येक मण्डलका अन्तर प्रमाण प्राप्त होगा। वह इस तरह-५१० यो० x 61=31110 + 48 अंश जोडनेसे 31158 इकसठवें भाग आए / अब 15 मण्डल विस्तारके कुल भाग करनेके लिए 56 x 15 = 840 इसे 31158 मेंसे -840 कम करनेसे 30318 क्षेत्रांश अन्तरक्षेत्र आया / 218106 ये भाग सातवें होनेसे 7) 218106 (31158 इकसठवें भाग हुए / उनके योजन करनेको 61) 31158 (510 305 0065 048 कुल 510 यो०१६ भाग चारक्षेत्र आया।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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