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________________ 258 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 86-90 एक योजनके इकसठवें 7 भागके 4 भाग उसके योजन लानेको प्रथम x 14 56 सातवें भाग आये / . इस 56 भागका 61 वाँ भाग प्रमाण लानेको 7)56 (8 एक यो० के 56 61 वें भाग निकले / पूर्व आए 61 वें 420 भागमें + 8 जोडनेसे 428 भाग इकसठवें आए, उनके योजन निकालनेके लिए 61) 428 (7 427 = 7 यो० ही यो० भाग आए। ००१-अंश शेष पूर्व आए 490 योजनमें + 7 भाग जोडनेसे 497 / यो० इतना 14 आंतरेका चन्द्रमण्डल स्पर्शना रहित भूमिक्षेत्र प्रमाण आया। अब चन्द्रमण्डल उक्त क्षेत्र प्रमाणमें पन्द्रह बार पड़ते हैं, इससे 15 बार विमान विस्तार जितनी जगह कुल रोकी जाती है तब उस विमानकी अवगाहनाके विषयक मण्डलोंका प्रमाण निकालें। . चन्द्रका विमान एक योजनके इकसठवें 56 भागका होनेसे 56 x 15 % 840 इतने इकसठवें भाग आए, उनके योजन निकालनेके लिए 61 से 840 को बांटे। 61) 840 (13 योजन 230 183 047 भाग शेष रहे। पूर्व आए चौदह आंतरोंका प्रमाण 497 योजन और इकसठवाँ एक अंश उसमें विमान विष्कभके 13 यो० और इकसठवें 47 भाग शेष रहे उस भागका चन्द्रका चारक्षेत्र आया। 510 यो० और - / / इति चन्द्रचारक्षेत्रम् // 15
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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