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________________ 238 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 86-90 . करे लेकिन दोनोंके मानका जोड़ करने पर उक्त तीस मुहूर्त्तका प्रमाण आए बिना नहीं रहेगा। . शंका-उपर्युक्त लेखन पढ़ने पर किसी पाठकको शंका होगी कि-जब आपने भरत-ऐरवत क्षेत्रमें सूर्यका प्रकाश 18 मुहूर्त तक रहा हो तब दोनों पूर्व-पश्चिम विदेहमें केवल 12 मुहूर्त प्रमाणवाली (सूर्यके प्रकाशाभावमें ) रात्रि वर्तित हो, वह रात्रि पूर्ण होने पर वहाँ कौनसा काल होता है ? क्योंकि ये दोनों विदेहगत रात्रिमान पूर्ण होने पर, वहाँ नहीं होता सूर्यका प्रकाश या नहीं होता रात्रिकाल, क्योंकि वहाँ रात्रि भले ही बीत गई हो लेकिन अब भी भरत, ऐरवत क्षेत्रमें दिनमान अठारह मुहूर्त्तका होनेसे, पूर्वापर दोनों विदेहगत रात्रिमानकी अपेक्षा छः मुहूर्त्तकाल तक सूर्यको भरतक्षेत्रमें (अथवा ऐरवत क्षेत्रमें ) प्रकाश देनेका है अर्थात् भरत-ऐरवतक्षेत्रमें 6 मुहूर्त प्रमाण दिवस शेष है, तो फिर पूर्व-पश्चिम . विदेहमें रात्रिकाल बीतने पर कौनसा काल हो ? समाधान -इस प्रश्नके अनुसंधानमें समझना कि भरतक्षेत्रमें प्रकाश देता हुआ 'भारतसूर्य' क्रमशः पश्चिमविदेहकी अन्तिम हद-कोटिकी तरफ दृष्टि रखता हुआ जब भरतक्षेत्रमें पन्द्रह मुहूर्त प्रमाण दिनमान पूर्ण करे अर्थात् भरतक्षेत्रमें 3 मुहूर्त तक प्रकाश देना शेष रहे तब पूर्व बाजूसे खसकता और पश्चिमगत दूर दूर क्षेत्र में आगे आगे तेजका प्रसार करते भारतसूर्यके प्रकाशने अभी विदेहक्षेत्रमें नहीं विदेहक्षेत्रके नजदीकके स्थान तक स्पर्शना की होती है / जब कि इस बाजू पर उस वक्त विदेहमें भी रात्रि पूर्ण नहीं हुई होती लेकिन पूर्ण होनेकी कोटिमें आ चुकी होती है / इस समय वह भरतसूर्य भरतक्षेत्रगत संपूर्ण पन्द्रह मुहूर्त पूर्ण करता हुआ आगे बढे कि तुरन्त ही उसका प्रकाश भी उतना ही दूर दूर आगे आगे फेंकाता जाए (और पीछे पीछेसे खसकता जाए) क्योंकि सूर्यके प्रकाशकी पूर्व-पश्चिम लम्बाई रूप चौडाई जो कि हर समय परावर्त्तन स्वभाववाली है, परन्तु दो बाजू पर तो सर्वदा समान प्रमाणवाली ही रहती है / अतः सूर्य ज्यों ज्यों ग्वसकता जाए त्यों त्यों जहाँ जहाँ तेज पहुँच सके ऐसे आगे आगेके जो क्षेत्र आवे वहाँ प्रकाश करता जाए / इस नियमानुसार अब तक पन्द्रह मुहूर्त काल पूर्ण होने आया था तब सूर्य जिस छोर पर प्रकाश दे रहा था उसके बदले पन्द्रह मुहूर्त पूर्ण होनेपर अब उसी सूर्यके प्रकाशने विदेहमें प्रवेश किया; अर्थात् भरतक्षेत्रमें तीन मुहूर्त्तका दिनमान शेष रहा तब वहाँ सूर्योदय हो चुका था / इससे भरतमें अठारह मुहूर्त दिनमानमेंसे अन्तिम तीन मुहूर्त तक दिवस हो तब वहाँके सूर्योदय कालके प्रारंभके (प्रभातके ) तीन मुहूर्त होते हैं। ___इससे क्या हुआ कि भरत, ऐरवतक्षेत्रके अस्तसमयके पूर्वका तीन मुहूर्त जो काल वह दोनों दिशागत विदेहके सूर्योदयमें कारणरूप होनेसे वही काल वहाँ उदयरूप समझना /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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