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________________ 218 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 86-90 शेष तीन मण्डल अग्निकोनेमें हरिवर्षक्षेत्रकी बाहाके ऊपर ( अथवा जीवाकोटी पर ) पडता हरिवर्षजीवाकोटयादौ ' इस तरह जीवाकोटी स्थानका निर्देश किया है, इससे विचारशील व्यक्तिको भ्रम होता है कि मूल गाथाओंमें रहे ‘बाहा' शब्दका अर्थ 'बाहा स्थाने' ऐसा फलितार्थ न करके ‘जीवाकोटी' ऐसा क्यों किया ? इसके लिए ऐसा समझना कि 'बाहा' शब्द स्पष्ट स्थानवाचक नहीं है, साथ ही जीवाकोटी यह औपचारिक बाहाकी चौडाईका ही एक देशभाग है (जो जीवा-बाहाकी परिभाषासे तथा चित्र देखनेसे स्पष्ट मालूम होगा) अर्थात् प्रसिद्ध ऐसी बाहाकी लंबाई और जगतीकी चौडाई (विष्कम्भ नहीं) उसका देशभाग उसे जीवाकोटी कहा जाता है। क्योंकि बाहा, एक प्रदेश मोटी और उस उस क्षेत्रादि जितनी दीर्घ गिन सकते, और उसकी...त्रिकोण काटकोन जैसी चौडाई उस बाहाकी औपचारिक चौडाई गिनी जाए कि जिसमें जगती और हरिवर्ष क्षेत्र भी है। और इसीलिए सिद्धान्तमें इस वस्तुके निर्देश प्रसंग पर मुख्यतया ‘जीवाकोटी' शब्द ही ग्रहण किया है / इस कारणसे जहाँ 'बाहा' शब्द आवे वहाँ जीवाकोटी स्थानको ग्रहण करनेमें अन्य अनौचित्य नहीं दीखता और " जीवाकोटी” ऐसा शब्द जहां आवे वहाँ तो वह स्पष्ट ही है / यहाँ इसमें ऐसा न समझना कि बाहा और जीवाकोटी एक ही है। परंतु उक्त लेखनसे तो यह निश्चित हुआ कि . बाहासे जीवाकोटी शब्दग्रहण अनुचित नहीं है / अब प्रथम ‘जीवाकोटी' तथा 'बाहा' शब्दका अर्थ समझ लें / ___'जीवा'-धनुषाकारमें रहा जो क्षेत्र उसकी अंतिम चापरूप जो सीमा-हद उसकी लंबाईरूप जो डोरी वह / जैसे कि--धनुषाकारमें रहा भरतक्षेत्र जहाँ ( मेरुकी तरफ) पूर्ण हुआ वहाँ पूर्व-पश्चिम लम्बाईरूप मर्यादा करनेवाली डोरी ‘जीवा' कहलाती, और उस जीवाके पूर्व-पश्चिमगत जो कोने होते हैं वे 'कोटी' कहलाते / अर्थात् जीवाकी कोटी-'जीवाकोटी' कहलाता है। 'बाहा' = लघुहिमवंत पर्वतकी पूर्व-पश्चिमकी जीवासे महाहिमवंत पर्वतकी दोनों दिशाओंमें रहा जो जीवास्थान है वहाँ तक क्रमशः वृद्धि पाता हुआ जो क्षेत्रप्रदेश और उससे होता बाहारूप आकार 'बाहा' कहलाता है। अब उस स्थानके बारेमें तीन मतांतर हैं, उनमें प्रथम दो मत निर्देश किये जाते हैं। (1) मलधारी श्रीमद् हेमचंद्रसूरिकृत इस चालू संग्रहणीमें तथा श्रीमद् मुनिचन्द्रसूरिकृत मंडलप्रकरणमें 62 मंडल निषध-नीलवंतमें और 63-64-65 ये अंतिम तीन मंडल बाहास्थानमें जणाते हैं। (2) श्रीमद् जिनभद्रगणिक्षमा० कृत संग्रहणीमें 64-65 दो मंडल बाहास्थानमें सूचित करते हैं / उक्त दोनों मतोंका समाधान-बाहास्थानमें प्रथम मतसे तीन मंडल और दूसरे मतसे दो मंडल उल्लिखित होनेसे वक्तव्यमें संख्याका भिन्नत्व दीखता है, फिर भी वह आपेक्षिक कथन होनेसे दोषरूप नहीं है, तथापि बाहास्थानमें दो अथवा तीन मंडल वास्तविक है तदपि वह स्थाननिर्णय स्पष्ट तो है ही नहीं। जबकि 'जीवाकोटी' शब्द दोनों कथनके लिए अत्यन्त स्पष्ट और स्थानसूचक होता है। विशेषतः बाहास्थानके तीन मंडलोंका वक्तव्य विशेष स्पष्ट युक्त है इतना ही नहीं लेकिन तीन मंडलोंके लिए तो बाहा-जीवाकोटी या. जगती तीनों शब्द उपयोगी हो सकते हैं। जो नीचेकी आकृति देखनेपर स्पष्ट मालूम होगा /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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