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________________ 216 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 86-90. 510 x 61 = 31110 ऊपरांत 48 अंश जोडनेसे 31158 इकसठवाँ भाग प्रमाण चारक्षेत्र आया / 184 मण्डल विस्तारके भाग पानेके लिए 184 x 48 = 8832 आए, इसे चारक्षेत्रकी जो भागसंख्या 31158 आई है उसमेंसे कम करने पर 22326 क्षेत्रांश भाग शेष रहे, आंतरे 183 होनेसे और प्रत्येकका अन्तर पानेके लिए २२३२६को १८३से बटा करनेसे 122 इकसठवें भाग आए, उनके योजन बनानेके लिए ६१से बटा करनेसे दो योजन प्रमाण सूर्यमण्डलका अन्तरक्षेत्र प्राप्त होता है। . सूर्यमण्डलोंका अन्तरनिःसारण लाने की अन्य रीतिसूर्यके मण्डल 184, अन्तर 183 है तथा सूर्यका विमान 46 यो० प्रमाण हैअब मण्डल 184 होनेसे 448 1472 प्रत्येक मण्डल विस्तारके साथ गुना करनेसे . 4736 कुल 8832 इकसठवें भाग 184 मण्डलके आए। उनके योजन करनेके लिए ६१से बटा करनेसे६१ ) 8832 ( 144 यो० 61 यो० इकसठवें . 273 सूर्यमण्डलका चारक्षेत्र 510-48 भाग 244 उनमेंसे सर्व मण्डलोंका 144-48 भाग . प्रमाण विष्कम्भक्षेत्र आया 244 इकसठवें भाग उसे कम * करनेसे 366-0 यो० आए। 048 शेष रहे। अब 184 मण्डलके अन्तर 183 हैं, 183 अन्तरका क्षेत्र 366 यो०, तो एक अन्तरका क्षेत्र कितना? इस तरह त्रिराशी करते = 2 योजन प्रमाण अन्तरक्षेत्र होता है, ऐसा उत्तर मिलेगा / इति अन्तरक्षेत्रप्रमाणप्ररूपणा // 2 // ३-सूर्यमण्डल संख्या और उसकी व्यवस्थासूर्यके कुल 184 मण्डल हैं, उनमेंसे 65 मण्डल जम्बूद्वीपमें हैं और ये जम्बूद्वीपमें 180 यो० अवगाह कर रहे हैं परन्तु इन 65 मण्डलोंका सामान्यतः चारक्षेत्र एकसौ अस्सी योजनका है। - यहाँ शंका होगी कि 65 मण्डलोंका 64 आंतरेका प्रमाण और 65 मण्डलोंका विमान विष्कम्भ इकट्ठा करें तो कुल क्षेत्र 179 यो० भाग प्राप्त होता है और आपने 0292
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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