SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 210 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 86-90. पञ्चम पुष्करार्धद्वीपवर्णन-तत्पश्चात् 16 लाख योजन चौडा और त्रिगुणाधिक परिधिवाला पुष्करद्वीप आया है / अब हम सिर्फ अढाईद्वीप (समयक्षेत्र )का वर्णन करते होनेसे मानुषोत्तरके अंदरका ही क्षेत्र लेनेके हेतुसे 8 लाख प्रमाण विष्कम्भवाला और 14230249 योजन परिधिवाला अभ्यन्तरभागका अर्ध पुष्करद्वीप लेनेका है / इस पुष्करार्धमें भी दो मेरु हैं, धातकीखण्डके पर्वतक्षेत्रों की तरह यहाँ भी 12 वर्षधर और 14 महाक्षेत्र चक्राकारमें समझना / यहाँ पर्वत-क्षेत्रादिके नाम जम्बूद्वीपके पर्वतादिके नामके समान होते हैं / जैसे जम्बूवत् धातकीका स्वरूप संक्षिप्तमें समझाया गया वैसे यहाँ भी धातकीखण्डवत् इस द्वीपका स्वरूप समझाया गया / इतना विशेष समझें कि धातकीखण्डके सर्व पदार्थोंसे इस द्वीपकी वस्तुएँ प्रायः द्विगुण-द्विगुण प्रमाणवाली सोचें / इति पुष्करार्धद्वीपवर्णन // मानुषोत्तर पर्वत वर्णन-इस पुष्करद्वीपके मध्यभागमें वलयाकार अर्थात् कालोदधिः / समुद्रकी जगतीसे सम्पूर्ण 8 लाख योजन पर्यन्त यह मानुषोत्तर पर्वत आया है / अतः इस मानुषोत्तरका विस्तार अवशिष्ट 8 लाख योजन प्रमाण पुष्करार्घमें समझना योग्य है, और यह (मानुषोत्तर) विस्तार 1022 योजन होनेसे 16 लाख प्रमाण पुष्करद्वीपके ( बाह्यार्ध ) अर्धभागके 8 लाख योजनके क्षेत्र विस्तारमेंसे 1022 योजन क्षेत्र मानुषोत्तर पर्वतने रोका है। . इस तरह अभ्यन्तर पुष्करार्धसे परिवृत्त मानुषोत्तर मानो अभ्यन्तर पुष्करार्धद्वीपका अथवा मनुष्यक्षेत्रका रक्षण करने में जगतीके सरीखा हो वैसा दीखता है / 224. सिंह निषादी' आकारवाले इस पर्वतका प्रमाण लवणसमुद्रमें आए वेलंधरपर्वतके समान है। अर्थात् 1721 यो० ऊँचा, मूलमें 1022 यो० चौडा और एक बाजू पर घटता हुआ शिखरतलमें 424 यो० चौडा है। यह पर्वत भी जांबूनद तपनीय सुवर्णके समान रक्तवर्णका है, मानुषोत्तर पर्वतके ऊपर चारों दिशाओं में सिद्धायतन कूट आए हैं / इति मानुषोत्तरपर्वतवर्णन // इस तरह जम्बूद्वीपका 1 मेरु, २-धातकीखण्डके और 2 अर्ध पुष्करके होकर 5 मेरु, इसी तरह ५-भरत, ५-ऐरवत, ५-महाविदेह, (15 कर्मभूमि क्षेत्र) ५-हैमवन्त, ५-हरिवर्ष, ५-देवकुरु, ५-उत्तरकुरु, ५-रम्यक्, ५-हैरण्यवत् होकर 30 युगलिक क्षेत्र, (अकर्मभूमि क्षेत्र ) कर्मभूमि-अकर्मभूमि होकर 45 क्षेत्र और 56 अन्तर्वीप कुल 101 मनुष्यक्षेत्र२२५ कहलाते हैं। इस तरह मनुष्योंके जन्ममरण अढाईद्वीपमें होते होनेसे ही 224. 'सिंहनिषादी' अर्थात् जिस तरह सिंह अगले दो पैर खड़े रखकर पिछले दो पैर नीचेकी तरफ मोड़कर नितम्बके तले दबाकर सकुच कर बैठता है तब पश्चात् भागमें नीचा ( ढलता ) और क्रमशः ऊपर जाते मुखस्थानमें अति ऊँचा बना दीखे, वैसे आकारका जो पर्वत है वह / 225. अढाईद्वीपमें भी 101 मनुष्यक्षेत्रोंमें जन्म तथा मरण अवश्य दोनों होते हैं परन्तु वर्षधरपर्वतों तथा समुद्रोंमें प्रायः मनुष्योंका जन्म सम्भवित नहीं है, मरण शायद संहरण मात्रसे सम्भवित हो /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy