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________________ 186 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 83-85 संख्या किस तरह जाने ? इसके लिए बालजीवोंको अतिशय उपयोगी ऐसा 'करण'. बताया जाता है, वह इस तरह __ जिस जिस द्वीप-समुद्रमें जितनी पंक्तियाँ हों उस उस पंक्तिकी सर्व संख्याको ‘गच्छ' ऐसी सांकेतिक संज्ञा दी जाती है, और आगे आगेकी पंक्तियोंमें जिन चार-चार चन्द्रों-सूर्योंकी वृद्धि करनेकी है, उस चारकी संख्याको 'उत्तर' ऐसी संज्ञा दी जाती है / अब ‘गच्छ 'का . 'उत्तर 'के साथ गुना करें, उसके बाद प्राप्त हुई संख्यामेंसे 'उत्तर' अर्थात् चारकी संख्या कम करें, अनन्तर जिस द्वीप अथवा समुद्रके चन्द्र-सूर्यकी संख्या जाननी हो उस द्वीपसमुद्रकी प्रथम पंक्तिमें चन्द्र-सूर्यकी जो संख्या हो उस संख्याका प्रथम आयी हुई संख्यामें प्रक्षेप करें। ऐसा करनेसे जो संख्या आये उसी संख्याको उस द्वीप अथवा समुद्रकी अन्तिम पंक्तिमें समझे / अब द्वीप-समुद्रकी सर्व पंक्तियोंके चन्द्रों-सूर्योंकी संख्या लानेके लिए अन्तिम पंक्तिमें जो संख्या आई है उसे प्रथम पंक्तिकी संख्यासे जोड़ें / इस तरह करनेसे जो संख्या आये उसका जिस द्वीप अथवा समुद्रमें जितनी पंक्तियोंका गुच्छ हो उससे अर्धगुच्छ अर्थात् जितनी पंक्तियाँ हों उसकी अर्ध संख्यासे गुना करनेसे इष्ट द्वीप अथवा समुद्रकी सर्व पंक्तियों में वर्तित सर्व चन्द्र-सूर्यकी संख्या मिलेगी / उस सम्बन्धी उदाहरण इस प्रकार उदाहरण-जैसे कि पुष्करसमुद्रमें आठ पंक्तियाँ हैं, उस आठको ‘गच्छ' कहा जाता है / उस गच्छका 'उत्तर' अर्थात् चारसे गुना करनेसे (844 = ) 32 आये, उसमेंसे चार कम करनेसे (32 - 4 = ) 28 आये, इस अठाइसमें प्रथम पंक्ति विषयक 144 चन्द्र-सूर्यकी संख्याका प्रक्षेप करनेसे आठवीं पंक्तिमें 172 चन्द्र-सूर्यकी संख्या प्राप्त हुई / पुनः १७२में 144 प्रथम पंक्तिकी संख्या जोड़नेसे (172 + 144 = ) 316 होते हैं, उसे 'गुच्छ' अर्थात् जो आठ है उसके आधे जो चार है उससे गुननेसे (316 x 4 = ) 1264 संख्या समग्र पुष्करार्धमें वर्तित सूर्य-चन्द्रोंकी प्राप्त होती है / उनमें 632 चन्द्र और 632 सूर्य जाने / इन आठों पंक्तियों मेंसे प्रथम पंक्तिमें 144 चन्द्र-सूर्य (चन्द्र 724 72 सूर्य ) हैं, दूसरी पंक्तिमें दो चन्द्रों तथा दो सूर्योकी वृद्धि होनेसे 148 चन्द्र-सूर्य होते हैं / तीसरीमें 152, चौथीमें 156, पाँचवींमें 160, छठीमें 164, सातवीं पंक्तिमें 168 और आठवीं पंक्तिमें 172 चन्द्र-सूर्योंकी संख्या होती है / इस तरह प्रत्येक इष्ट द्वीप अथवा समुद्रमें वर्तित सर्व चन्द्र-सूर्योकी संख्या ज्ञात हो सकती है। -इति तृतीयमतनिरूपणम् // इस तरह मनुष्यक्षेत्रके बाहर परिरयपंक्तिसे सूर्य-चन्द्रकी व्यवस्था विषयक कथन करनेवाला एक दिगम्बरीय मत, और दूसरा प्रसिद्ध आचार्यका मत प्रदर्शित किया गया /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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