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________________ 154 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [गाथा 76-77 __ प्रत्येक द्वीप-समुद्र वज्रमय जगतीसे लपेटे हुए हैं, जिस तरह नगरके रक्षणार्थ किला होता है, उसी तरह यह जगती मूलमें बारह योजन, मध्यभागमें आठ योजन और शिखर पर चार योजन चौड़ी होती है तथा कुल वनरत्नसे शोभित यह जगती आठ योजन ऊँची होती है। इस जगती पर अनेक प्रकारके विविध वर्णमय रत्नोंसे सुशोभित पद्मवर नामकी वेदिका है / यह वेदिका दो कोस ऊँची और 500 धनुष विस्तारवाली है / इस वेदिकाकी दोनों बाजू पर उत्तम प्रकारके भिन्न भिन्न प्रकारके वृक्षोंवाले, अनेक प्रकारसे सुशोभित श्रेष्ठ वन आए हैं / इन वनखंडोंमें व्यन्तर देव-देवियाँ अनेक प्रकारकी क्रीडाएँ करते हैं। - इस जगतीके मध्यभागमें चारों ओर घूमता हुआ उक्त वेदिकाके प्रमाणवाला गवाक्षकटक (झरोखा) आया है। इस कटकमें व्यन्तर देव-देवियाँ समुद्रकी लीला-सुन्दर लहरोंको अनुभूत करके, विविध प्रकारकी हास्यादि क्रीडाएँ करते हैं और अनेक प्रकारके सुखोंका अनुभव करते हैं / [76-77] // दूसरे भवनद्वारमें द्वीप समुद्राधिकार पूर्ण हुआ // Pancarcancercencancercaxcercareerrang // द्वोप-समुद्राधिकारे तृतीयं लघु परिशिष्टम् नं-३ // Searanewwermewo जैनदृष्टिसे ज्वार-भाटाका कारण तिर्छालोकवर्ती असंख्यात द्वीप-समुद्रोंमेंसे सिर्फ एक लवणसमुद्र में ही ज्वार-भाटाका प्रसंग मिलता है / हम एक लाख योजनके बने जंबूद्वीपमें आए हुए छोटेसे भरतक्षेत्रमें रहते हैं / इस भरतक्षेत्रकी ( उत्तर दिशाके सिवा ) तीनों दिशाओं में लवणसमुद्र होनेसे इस भरतक्षेत्रवर्ती मानवोंको लवणसमुद्र में होते ज्वार-भाटाके प्रसंग विशेष रूपमें देखने में आते हैं / लवणसमुद्र जंबूद्वीपकी चारों बाजुओंसे परिवेष्टित वलयाकारमें आया है और उसका चक्रवाल-एक बाजूका (चौड़ाई) विष्कंभ दो लाख योजन प्रमाण है / इस समुद्र में एक हजार योजनके विस्तारवाली और समभूतलाकी समसतहसे सोलह हजार योजन और समुद्रतलसे सत्रह हजार योजन ऊँची जलवृद्धि होती है / इस जलवृद्धिके नीचे चारों दिशाओं में एक एक बडे पातालकलश आये हैं / ये कलश बडे घटके आकार के समान और वज्ररत्नके हैं / इसके ठीकरेकी मोटाई एक हजार योजनकी, नीचेसे दस हजार योजन चौडे और उतने ही चौडे ऊर्ध्वस्थानमें भी अर्थात् दस हजार योजन चौडे मुखवाले,
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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