SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 144 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा-७० वनखण्ड होनेसे तथा महापद्म देवके निवाससे यह नाम भी गुणवाचक है / 4. वारुणिवरद्वीप-(वारुणि = मदिरा, वर = श्रेष्ठ ) इस द्वीपवर्ती बावलियों आदिका . जल उत्तम 'मदिरा' जैसा होनेसे यह नाम पड़ा है। 5. क्षीरवरद्वीप-इस नामके द्वीपकी बावलियों आदिका जल भी विशेषतः 'क्षीर-दूध' जैसा होनेसे सफल लेखा जाता है / 6. घृतवरद्वीप-इस द्वीपकी बावलियां भी विशेषतः ‘घृत' समान स्वादवाले जलसे युक्त होनेसे उक्त नाम कहा गया है / - 7. इक्षुवरद्वीप-इस द्वीपकी बावलियाँ ‘इक्षु-इख' रसके स्वादवाली विशेषतः होनेसे द्वीपका यह नाम रक्खा गया है / 8. नन्दीश्वरद्वीप-नन्दी नाम 'वृद्धि-समृद्ध ' इससे श्रेष्ठ होनेसे यह नाम योग्य है। ॥श्री नन्दीश्वरद्वीप विषयक किंचित् वर्णन // नन्दी अर्थात् (सर्व प्रकारसे ) वृद्धि उसमें 'ईश्वरः'— श्रेष्ठ, उसे नन्दीश्वर कहा जाता है। प्रथम 1. जम्बूद्वीप, 2. लवणसमुद्र, 3. धातकीखण्ड, 4. कालोदधि, 5. पुष्करद्वीप, 6. पुष्करसमुद्र, 7. वारुणीवरद्वीप, 8. वारुणीवरसमुद्र, 9. क्षीरवरद्वीप, 10. क्षीरवरसमुद्र, 11. घृतवरद्वीप, 12. घृतवरसमुद्र, 13. इक्षुवरद्वीप, 14. इक्षुवरसमुद्र, इस तरह सात द्वीप और सात समुद्र उल्लंघन करनेके बाद आठवाँ ‘नन्दीश्वरद्वीप' आता है। इस द्वीपमें चारों दिशाओंके मिलकर वावन (52) जिनालय [और आगे आते हुए कुण्डल तथा रुचक द्वीपके चार चार मिलकर कुल 60 १६५जिनालय मनुष्यक्षेत्रके बाहर ] आए हैं / यह द्वीप 1638400000 योजन चौडा है। इस द्वीपके मध्यभागकी अपेक्षासे चारों दिशाओं में श्यामवर्णके 'चार अञ्जनगिरि' आए हैं, वे 84000 योजन ऊँचे हैं और चारोंके उपर एक-एक जिनभवन है। 'इति अञ्जनगिरिचैत्यानि // इस अजनगिरिके चारों दिशाओंकी तरफ एक एक लाख योजनके अन्तर पर एक-एक लाख योजन लम्बी चौड़ी इसीसे विराट् स्वरूपका दिग्दर्शन कराती बावलियां हैं। एक अञ्जनगिरिकी अपेक्षामें चार बावलियाँ होनेसे चार अञ्जनगिरिकी अपेक्षामें 16 बावलियां 165. 'बावन्ना नन्दीसरम्मि चउ चउर कुण्डले रुयगे'। [शाश्वत चैत्यस्तव]
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy