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________________ ग्रहण और एक तारेसे दूसरे तारेका अन्तर ] गाथा-६१-६२ [ 135 चन्द्रग्रहण पूर्णिमाके दिन होता है इससे और सूर्यग्रहणको अमावसको होनेसे पर्वराहुसे होते आच्छादनमें किसी भी प्रकारका विरोध दिखता नहीं है / जब कि ग्रहणसंयोग अमुक प्रमाणमें अमुक रीतिसे होता है तब उसे 'खग्रास' [ खण्ड-ग्रह ] आदि नाम दिये जाते हैं। शंका-जम्बूद्वीपमें जब ग्रहण होता है तब एक साथ दोनों सूर्योका होता है या नहीं ? अगर होता हो तो समग्र क्षेत्रोंके चन्द्रादिका ग्रहण भी एक साथ हो सके या नहीं ? . समाधान-जब हमारे यहाँ ग्रहण होता है तब जम्बूद्वीपमें तो क्या लेकिन समग्र मनुष्यक्षेत्रों में स्थित 132 चन्द्रोंका और 132 सूर्यांका भी ग्रहण एक साथ ही होता है क्योंकि 15 मनुष्यक्षेत्रमें अमुक नक्षत्रका योग आता है तब ग्रहण होता है / अतः सकल चलित चन्द्र-सूर्यका एक ही नक्षत्रके साथका योग सर्व स्थानों में समश्रेणीमें व्यवस्थित होनेसे चरज्योतिषियोंका चर क्रम व्यवस्थित रीतिसे ही आता है, अतः सबका ग्रहण भी एक साथ ही होता है। यह ग्रहण किसी भी क्षेत्रमें हो सकता है। इस ग्रहणकी शुभाशुभ स्थिति पर लोकों में भी सुखासुख आदि कैसा होगा ? इस सम्बन्धमें भविष्यका बहुत आधार रहता है। शंका-युगलिकक्षेत्रमें ग्रहण होता हो और वहाँ अशुभ ग्रहण हो तब शुभभाववाले क्षेत्रोंमें भी क्या अशुभपन प्राप्त होता है ? समाधान---यद्यपि उन क्षेत्रोंमें चन्द्रादिकी गति होनेसे ग्रहण होना संभव तो है, परन्तु उनके महान् पुण्यसे तथाप्रकारके क्षेत्रप्रभावसे अथवा कभी कभी ग्रहणदर्शनके अमावसे उन्हें किसी भी उपद्रवका कारण नहीं होता है। इस तरह श्री जीवाभिगमसूत्र में स्पष्ट किया है। [61] अवतरण-जम्बूद्वीपमें एक तारेसे दूसरे तारेका अन्तर कितना होता है ? .. तारस्स य तारस्स य, जम्ब्रद्दीवम्मि अंतरं गुरुयं / बारस जोयणसहसा, दुन्नि सया चेव बायाला / / 62 / / गाथार्थ-जम्बूद्वीपमें एक ताराविमानसे दूसरे ताराविमानके बीचका अन्तर बारह हजार दो सौ बयालीस योजनका है। / / 62 / / विशेषार्थ-जम्बूद्वीपके मेरुपर्वतका समभूतला पृथ्वीके स्थानमें व्यास (घेरा-मोटाई) दस हजार योजनका है, वहाँसे 790 योजन ऊँचा तारामण्डल फैला हुआ है। उस स्थानमें 156. चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, ताराके सम्बन्धमें होता विपर्यास क्रम, तिथिकी घट-बढ़, अधिकमास आदिका कारण आदि ‘काललोकादि' ग्रन्थोंसे अथवा उस विषयके ज्ञाताओंसे जान लें /
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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