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________________ 110 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 48 नवरं वंतर-जोइस,-इंदाण न हुंति लोगपालाओ / तायत्तीसभिहाणा, तियसा वि य तेसिं न हु हुंति // 48 // [प्र० गा० सं० 11] गाथार्थ तैतीस त्रायस्त्रिंशक देव, तीन-तीन पर्षदाएँ, चार-चार लोकपाल देव, सात प्रकारका सैन्य, सात सैन्योंके अधिपति-इतना परिवार सभी इन्द्रोंका होता है, परन्तु व्यन्तर तथा ज्योतिषीके इन्द्रों के पास लोकपाल देव और त्रायस्त्रिंशक नामके देव नहीं होते हैं / / / 47-48 // विशेषार्थ-पहले देवोंके प्रकारोंका वर्णन किया गया था, परंतु संख्याकी वक्तव्यता नहीं कही थी, इसलिए अब संख्या बताते हैं / १२८त्रायस्त्रिंशक नामके देव तैंतीस होते हैं, इन्द्रमहाराज प्रसंग-प्रसंग पर इन देवोंकी सलाह लेते हैं। हरएक देवलोकमें बाह्य, मध्यम और अभ्यन्तर इस तरह तीन-तीन पर्षदाएँ अर्थात् सभाएँ होती हैं। इन पर्षदाओंके नाम प्रत्येक निकायमें अलग-अलग होते हैं। जिस-जिस देवस्थानमें पर्षदा है, उस उस पर्षदामें प्रत्येक पर्षदाके देवों तथा देवियों का आयुष्य अलग अलग होता है। प्रत्येक इन्द्रके आवासके चारों ओर चार लोकपाल होते हैं, इन लोकपालोंकी भी पर्षदाएँ होती हैं, उस प्रत्येक लोकपालके विमानोंके नीचे ही तिजलोकमें अपने अपने नामकी उनकी नगरियाँ भी हैं। उनके विमानोंका प्रमाण पंक्तिबद्ध विमानोंसे आधा होता है / साथ ही सामानिक आदि देवोंका भी परिवार है। इन लोकपालों के नाम अन्य निकायवर्ती अलग-अलग होते हैं। आयुष्य भी भिन्न भिन्न होते हैं वैसे ही पहले कहा था वैसा सात प्रकारका सैन्य हरएक इन्द्रके पास होता है। और प्रत्येक निकायके कटकके सात-सात सेनापति भी होते हैं, उनके निकायके अनुसार अलग-अलग नाम होते हैं / इस तरह ऊपर बताया गया परिवार सभी इन्द्रोंके पास सामान्यतः होता है / परंतु इतना विशेष समझे कि 12 व्यन्तरेन्द्रों तथा ज्योतिषीके इन्द्रोंके पास लोकपाल 128. इन देवोंके स्वस्व स्थानाश्रयी वर्तित नाम तीनों कालोंमें शाश्वत (एक समान ) होते हैं / पर्षदाका विस्तृतवर्णन श्रीजीवाभिगमादिसे जानें / 129. तुलना करें-तत्त्वार्थचतुर्थाध्याये 'त्रायस्त्रिंशलोकपालवर्जा व्यन्तरज्योतिष्काः'।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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