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________________ विक्रम चरित्र शूर का श्रीमती से लग्न ___क्रमशः राजा शूरने श्रीपुरमें राजा धीर की कन्या श्रीमती से अच्छे उत्सव के साथ शिवका विवाह कराया। अपने पुत्रको राज्य देकर धर्मधुरंधर राजा शूर अपनी स्त्रीसहित धर्म-आराधना करके अन्त में स्वर्ग गया। क्यों कि धन चाहने वाले को धन देनेवाला, कामकी इच्छा करने वाले को काम देनेवाला और परंपरा से मोझ का भी साधक एक धर्म ही यह जीव लोक में है। राजा शिव अपने पिताका प्रेत कार्य करके शोक को त्यागकर न्यायपूर्वक पृथिवीका पालन करने लगा। क्यों कि दुर्बल, अनाथ, बाल, वृद्ध, तपस्वी, अन्यायद्वारा पोडिन इन सब व्यक्तियोंका राजा ही गति-आधार है। एकदिन जब राजा शिव सभा में बैठे थे तब कोई मनुष्य प्रणाम करके बोलाकि 'हे राजन् ! धीर नामका शत्रु इस समय हीरपुर नामके नगरको नष्ट करके चला गया। ऐसा सुन कर राजा तैयार होकर उस शत्रुको जितने के लिये हाथी, घोड़े, रथ, पैदल आदि सेनासे युक्त होकर प्रयाण किया। घोड़ोंके खुरके आघात से उड़ी हुई धूलियोंसे आकाशको व्याप्त करता हुआ नदीयों के जलका शोषण करता हुआ शत्रु के नगर के समीप आ पहुँचा। राजा शिव व धीर की सेनाका युद्ध दूतके मुखसे राजा शिवको आया हुआ जानकर वह शत्रु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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