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________________ 371 मुनि निरंजनविजयसंयोजित व्रण (घाव) को भी किया जाता है / भीम को बांधना इसके बाद राजाने भीम के घर पर सील लगवा दी तथा उसको बाँधकर महल में मंगवाया। कहा भी है कि दौर्भाग्य, नौकरी, दासता, अंगच्छेद, दरिद्रता, ये सब चोरी का फल है। इसलिये चोरी नहीं करनी चाहिये / चौर्यरूपी पापवृक्ष का फल इस लोक में भी वध, बन्धन आदि के रूप में मिलता है तथा पर लोक में भी नरकवेदना आदि भोगनी पड़ती है। जो किसी प्राणी को विश्वास देकर द्रोह करते हैं, उनको इस लोक में तथा परलोक में निरन्तर महाकष्ट भोगना पड़ता है। अत्यन्त शत्रुता करना, इस लोक और परलोक से जो विरुद्ध हो, उसे नहीं करना चाहिए और पर स्त्री गमन त्याग देना चाहिये, क्यों कि पर स्त्री गमन करने वाला सर्वस्व हरण, बन्धन, शरीर के अवयव का छेदन तथा मरने पर घोर नरक प्राप्त करता है। विक्रमचरित्र का भीम को छुडाना व सोमदन्त का आदर भीम को इसप्रकार कष्ट में देख कर विक्रमचरित्र ने राजा से कहा कि 'हे तात! इस को छोड़ दीजिये। अब इसे अधिक देर बंधन में न रखें, क्यों कि यह मेरी स्त्री और धन को यहाँ तक सुखपूर्वक ले आया है।' इसप्रकार कह कर विक्रमचरित्र ने भीम को बन्धन से + शठदमनमशठपालनमाश्रितभरणं च राजचिह्नानि। ' अभिषेकपट्टबन्धों बालन्यजनं व्रणस्यापि // 394 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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