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________________ विक्रम चरित्र भक्षण की याचना करती ही रहती थी। कई दिनों बाद सोमदन्त अपने नगर में पहुँचा उसने तो विक्रमचरित्र का सब समाचार राजा को कह सुनाया / पुत्र के अंधे होने का समाचार सुन कर राजा अत्यन्त दुःखी हुआ / वह हमेशा दूरसे आये हुए लोगों को सतत अपने पुत्र के विषय में पूछता रहता था। राजा को काफी समय तक अपने पुत्र का कोई भी समाचार न मिला तो वह सोचने लगा कि पुत्र के बिना मेरे. प्राण रहने से क्या लाभ ? राजा का ज्योतिषी को विक्रमचरित्र के आने के बारे में पूछना इसके बाद एकदा विक्रमादित्य ने अपने मंत्रियों से विचार विनिमय कर के एक दैवज्ञ ज्योतिषी को बुलाया और उसे अपने पुत्र के आगमन के विषय में पूछा। ज्योतिषी अपने निमित्त को अच्छी तरह देखने के बाद कहने लगा कि 'हे राजन् ! आपका पुत्र आज प्रातःकाल अथवा परसों नेत्रों से सज्जित होकर आ जायगा / इस समय का लग्न यही कह रहा है। जहाँ तक हो, आपका पुत्र इस नगर में भी आ गया है / इसलिये आप अपने मनमें कुछ भी दुःख न करें। नगर में घोषणा यह सुनते ही राजाने प्रसन्न होकर अपने मंत्रियों से विचार करके नगर में सब जगह पटह बजवाया कि “जो कोई राजपुत्र का आगमन कहेगा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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