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________________ 342 विक्रम चरित्र वृक्षं क्षीणफलं त्यजन्ति विहगाः, शुष्कं सरः सारसाः, . पुष्पं पर्युषितं त्यजन्ति मधुपा, दग्धं वनान्तं मृगाः। निद्रव्यं पुरुषं त्यजन्ति गणिकाः, भ्रष्टं नृपं सेवकाः, सर्वः कार्यवशाज्जनो हि रमते, कः कस्य को वल्लभः?॥१५१॥ ____फल रहित वृक्ष को पक्षी छोड़ देते हैं, जल रहित सरोवर को सारस छोड़ देते हैं, वासी पुष्प को भ्रमर त्याग देते हैं, दग्ध वन को मृग छोड़ देते हैं, धन रहित पुरुष को वेश्या छोड़ देती है और राज्य. भ्रष्ट राजा को सेवक छोड़ देते हैं, सब प्राणी अपने अपने कार्यक्शस्वार्थवश ही प्यार करता है। अन्यथा यह संसार में कौन किसका प्रिय है ? जंगलमें एकाकी सोमदन्त के चले जाने पर विक्रमचरित्र जंगल में एकाकी रह गया / वह सरोवर के तट पर से उठकर धीरे धीरे चला, भूख व प्याससे उसका शरीर शिथिल हो गया। उस भयंकर जंगल में वह निर्भय होकर चला। चलते चलते वह एक पेड के नीचे आकर बैठ गया और सोचा कि कोई जंगली प्राणी आकर मुझे मार दे तो ठीक, उसने अपने पिता व पत्नी को याद किया और प्रभु का स्मरण कर वहीं लेट गया / Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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