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________________ 326 विक्रम चरित्र mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm ___ जब राजा सचेत हुआ, तो बिना कारण ही उपकार करने वाले उस व्यक्ति पर प्रसन्न होकर उसके प्रति कहने लगा, " विरल मनुष्य ही गुण के जानने वाले होते हैं। अपने दोषों को ठीक तरह से देखने वाले भी विरल ही होते हैं। दूसरों के कार्य को सिद्ध करने वाले भी थोड़े ही होते हैं। इसी प्रकार दूसरों के दुःख से दुःखी होने वाले भी थोड़े ही होते हैं। दो प्रकार के पुरुषों से ही यह पृथ्वी धारण की हुई है, जिन की बुद्धि परोपकार में निरत है तथा जो उपकार को कदापि नहीं भूलते हैं।" कहा भी है कि "सज्जन व्यक्ति अपने कार्य को छोड़ कर भी दूसरों के कार्य में लगे रहते हैं। जैसे चन्द्रमा अपने कलंक को मिटाना छोड़कर पृथ्वी को उजाला देता है। "+ बनवासी भील का अतिथि वह वनवासी राजा के शब्द सुन कर खुश हुआ और उसे सम्मान पूर्वक अपने साथ पर्वत की गुफा में ले गया और वनवासी पति-पत्नी दोनों ने अत्यन्त प्रेम से राजा की भक्ति की। आदर पूर्वक भोजन आदि देकर उसकी भूख को शान्त करके स्वस्थ किया / कहा भी है :___“जल में शान्त करने वाला रस होता है, दूसरे के अन्न में जो - + इंति परकजनिरया निअकज्जपरमुंहा फुडं सुंअणा / चन्दो धवलेइ महीं न कलंक अत्तणो फुसइ // 521 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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