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________________ उनका सारा विशेष वर्णन मुझे यहाँ करना उचित प्रतीत नहीं हो रहा है। विशेष जानने के इच्छुक समयसारादि ग्रन्थों का वाचन कर सकते हैं। अनुपचरित असद्भूत व्यवहार नय की अपेक्षा से आत्मा - अब सामान्य रूप से व्यवहारनय की अपेक्षा से भी आचार्य कथन करते हैं, क्योंकि निश्चय और व्यवहार एक सिक्के के दो पहूल हैं, दोनों को साथ लेकर जो चलता है वही सम्यग्दृष्टि बुद्धिमान पुरुष है। जिस प्रकार पक्षी को उड़ने के लिये दोनों पंखों की आवश्यकता होती है, एक के अभाव में दूसरा कार्यकारी नहीं होता है, उसी प्रकार किसी भी पदार्थ का निर्णय करने के लिये निश्चय और व्यवहार दोनों नयों की आवश्यकता होती है। जिस प्रकार पक्षी की उड़ान के लिये पंख ही सर्वोपरि है, चाहे दायाँ हो या बायाँ पंख यदि एक भी पंख क्षतिग्रस्त हो जाय तो वह पक्षी अपने लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर पाता है, उसी प्रकार दोनों नयों में से एक भी नय विनष्ट हो जाय तो हमारा अभीष्ट मोक्षपद हमें कभी भी प्राप्त नहीं हो सकता है। जो है वह प्रमाण है और जिससे कहा जा रहा है वह नय है। नय अव्यवस्था फैलाने की वस्तु नहीं, अपितु अव्यवस्थित व्यवस्था को व्यवस्थित करने का नाम नय है। वे जीव अज्ञानी हैं, जो नय को न समझकर अव्यवस्था फैला रहे हैं। हम नय को परमात्म पद का हेतु समझ बैठे हैं, परन्तु नय परमेश्वर नहीं, बल्कि परमेश्वर को बताने वाला मार्ग है, कथन करने की शैलियाँ हैं। . आचार्य देवसेन स्वामी व्यवहार नय की अपेक्षा से कथन करते हैं कि - जीव के कर्म, नोकर्म अनुपचरित असद्भूत व्यवहार नय की अपेक्षा से हैं, कोई अलग से लगाये गये नहीं हैं।' स्वयं बंध किया है, अतः स्वयं दु:ख भोग रहा है। जो व्यक्ति गरिष्ठ भोजन करता है, छाँछ, भैंस का दूध आदि का सेवन करता है और कहता है कि मुझे नींद बहुत आती है, तो नींद आयेगी ही। उसी प्रकार कर्मबन्ध के अनेक हेतु हैं, इनसे कर्म बन्ध करता है, जैसा बन्ध होगा वैसा ही उदय में तो आयेगा ही। तत्त्वसार गा. 22 403 Jain Education Interational www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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