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________________ से शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध आदि पाँच तन्मात्रायें उत्पन्न होती हैं। इन पाँचों तन्मात्राओं से क्रमशः आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी ये पाँच महाभूत उत्पन्न होते हैं।' सांख्य मत का ऐसा मानना है कि पुरुष और प्रकृति का संयोग होता ही है मुक्ति के लिये। जब तक विकृत नहीं होंगे तो शुद्ध कैसे होंगे? पुरुष का प्रकृति से संयोग अविवेक के कारण होता है और बन्धन भी। विवेक से दुःख की निवृत्ति होती है। कहते हैं - 'द्वयोरेकतरस्य वा औदासीन्यमपवर्ग:' अर्थात् दोनों का अथवा एक का उदासीन हो जाना ही अपवर्ग अर्थात् मोक्ष कहा गया है। पुरुष का स्वरूप बताते हुए कहा गया है कि - यह तीनों गुणों से रहित, विवेकी, विषयी, विशेष, चेतन, अप्रसवधर्मी, अविकारी, कूटस्थ, नित्य और सर्वव्यापक है। वह कैवल्य सम्पन्न, मध्यस्थ, दृष्टा, अकर्ता और इस जगत् का साक्षी बताया गया है। __जैनदर्शन में जीव अर्थात् आत्मा ज्ञाता, दृष्टा और चेतनसहित स्वीकार किया गया है। यह प्रारम्भ से ही कर्मों के संयोग से अशुद्ध है और तप-ध्यान आदि के द्वारा कर्मों का नाश करके मुक्ति की प्राप्ति कर सकता है। आचार्य देवसेन स्वामी ने सैद्धान्तिक पक्ष की अपेक्षा आचारपरक अधिक विवेचन किया है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय सांख्य के सिद्धान्तों से सभी लोग भली-भाँति परिचित थे। अतः आचार्य ने अधिक व्याख्यान करना उचित नहीं समझा। टीकाकार ने भी कोई विशेष विवेचन नहीं किया है, इसलिये कुछ श्लोक मैंने इसमें उद्धृत किये हैं। सांख्य मत में तीन प्रमाण स्वीकार किये गये हैं-प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द। शब्द अर्थात् आप्तवचन कहा गया है। परन्तु विचारणीय तथ्य यह है कि ये शब्दों को तो प्रमाण मानते हैं परन्तु ईश्वर की सत्ता को स्वीकार नहीं करते, क्योंकि ईश्वर के प्रमाण का अभाव होने से असिद्ध होते हैं। ये आप्त को ईश्वर से भिन्न स्वीकार करते हैं। सांख्यकारिका श्लो. 22 प्रतिविषयाध्यवसायो दृष्टं त्रिविधमनुमानमाख्यातम्। तल्लिङ्गलिङ्गिपूर्वकम् आप्तश्रुतिराप्तवचनं तु।। सां. का. 5 388 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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