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________________ दान देने के लिये और प्रेरित करते हए आचार्य लिखते हैं कि - जो यथेष्ट धन, दान देने का भाव और सुपात्र की प्राप्ति, इन तीनों संयोगों को पाकर सुपात्रों में दान देता है वह तीनों लोकों में धन्य समझा जाता है और नरकादि दुर्गतियों को सदा के लिये रोक देता है। कहते हैं कि जो अपना धन पात्रदान में लगाता है वह अगली पर्यायों के लिये अनन्त गुनी सम्पत्ति या स्वर्गसुख रूपी सम्पदा को प्राप्त करने का साधन बना लेता है। लक्ष्मी के बढ़ने पर अधिक दान देना तो स्वाभाविक है परन्तु जब लक्ष्मी घटने लगे तब सोचना चाहिये कि यह लक्ष्मी तो जा ही रही है और चली ही जायेगी, इसलिये इसको अन्य कार्यों में क्यों जाने दिया जाय? इसको तो सुपात्र दान में ही दिया जाना चाहिये। यही समझकर लक्ष्मी के घट जाने पर भी विशेष रीति से सुपात्रों को अधिक दान देना चाहिये। अब जो भी जीव दान नहीं देता है उसे क्या फल मिलता है उसको बताते हैं - जो दान पूजादि नहीं करता है वह दूसरों का अन्न पीसकर पेट भरते हैं तो भी उन्हें भरपेट भोजन नहीं मिलता है। वे लोग कहार अर्थात् जो पालकी आदि में बैठाकर ले जाता है, होते हैं और दीन आकृति बनाकर लोगों की बड़ी विनय करते हैं, वे दूसरों के हाथ-पैर दबाते हैं और झूठी तारीफ भी करते रहते हैं कि आपके पैर हाथ आदि तो बहुत ही कोमल हैं। किसी के जानवरों और खेतों आदि की रखवाली करते रहते हैं। वे लोग राजाओं के आगे-आगे शस्त्रादि लेकर दौड़ते रहते हैं और सर्दी-गर्मी, धुल-पसीना आदि का ध्यान नहीं रख पाते हैं। वे लोग अतिदीन होते हैं और दूसरों की धन-सम्पदा, स्त्री आदि को देखकर दु:खी होते हैं और पश्चाताप करते हैं कि यदि हमने भी पूर्व भव में पात्रों को दान दिया होता तो ऐसे कष्ट नहीं झेलने पड़ते। इस प्रकार पात्र दान के फल को जानकर और दान न देने वालों के फल को जानकर हृदय में लोभ को दबाना चाहिये और यथाशक्ति सुपात्रों को दान अवश्य देना चाहिए।' 1 भा. सं. गा. 566 भा. सं. गा. 567-568 वही गा. 569-577 343 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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