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________________ आदि की वृद्धि होती है वह द्रव्य विशेष है। दान योग्य द्रव्य के विषय में आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी लिखते हैं कि - जो राग-द्वेष, मान, दु:ख आदि पापों को उत्पन्न नहीं करता और जिनसे तपश्चरण, पठन-पाठन, स्वाध्यायादि कार्यों की वृद्धि करता है वही द्रव्य साधु को देने योग्य है। आचार्य अमितगति के अनुसार दान योग्य द्रव्य का स्वरूप इस प्रकार है - जिससे राग नष्ट होता है, धर्म की वृद्धि होती है, संयम पुष्ट होता है, विवेक उत्पन्न होता है, आत्मा में शान्ति आती है, पर का उपकार होता है तथा पात्र का बिगाड़ नहीं होता वही द्रव्य प्रशंसनीय है। आचार्य देवसेन स्वामी दान योग्य द्रव्य के विर्षेय में प्रकाश डालते हुए लिखते हैं कि - उत्तमपात्रों को निरन्तर आहारदान देना चाहिये। वह आहार निर्दोष हो, प्रासुक हो, शुद्ध हो, निर्मल हो, योग्य हो, मन, वचन और शरीर को सुख देने वाला हो, समय या ऋतुओं के अनुकूल हो, नीरोगता का विचार हो और पेट में पहुँचने पर तपश्चरण, ध्यान और ब्रह्मचर्य आदि के द्वारा सुखपूर्वक जीर्ण हो जाय वह उत्तम दान योग्य द्रव्य है। पं. आशाधर जी भी द्रव्य के स्वरूप को बताते हुए लिखते हैं कि - आहार, औषध, आवास, पुस्तक, पिच्छिका, कमण्डलु आदि द्रव्य देने योग्य हैं। राग-द्वेष, असंयम, मद, दु:ख आदि को उत्पन्न न करते हुए सम्यग्दर्शनादि की वृद्धि का कारण होना उस द्रव्य की विशेषता है।' आचार्य देवसेन स्वामी कहते हैं कि जो भी दान देने योग्य उत्तम द्रव्य को चतुर्विध संघ को देता है, वह द्रव्य पात्र को भी संसार से पार कर देता है और दान देने वाले दाता को भी संसार से पार कर देता है। नहीं देने योग्य द्रव्य - आचार्य पद्मनन्दि महाराज कहते हैं कि आहारादि चतुर्विध दान , से अतिरिक्त गाय, सुवर्ण, पृथ्वी, रथ और स्त्री आदि के दान देने से फल प्राप्त नहीं होता। इसी प्रसंग में पं. आशाधर जी कहते हैं कि - नैष्ठिक श्रावक प्राणियों की हिंसा के कारण होने से भूमि, शस्त्र, गौ, बैल, घोड़ा आदि हैं आदि में जिसके ऐसे कन्या, स. सि. 7/39, रा. वा. 7/39/3, त. भा. 7/34, चा. सा. 28/3 पु. सि. श्लोक 170 अमि. श्रा. श्लो. 81-82 भा. सं. गा. 511-513 सा. ध. 5/46 पद्म. पं. वि. 2/50 338 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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