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________________ इन तीनों दानों में सात्विक दान उत्तम है, राजस दान मध्यम है और तामस दान निकृष्ट है।' इन दानों के अलावा एक दान और आचार्यों ने निर्देशित किया है वह है क्षायिक दान। दानान्तराय कर्म के अत्यन्त क्षय से अनन्त प्राणियों के समुदाय का उपकार करने वाला क्षायिक अभय दान होता है।' चार अधिकार आचार्य देवसेन स्वामी की दृष्टि के अनुसार दान देने से पहले चार अधिकारों को अच्छी प्रकार से यदि श्रावक समझ लेता है तो उसी दान में श्रावक को और अधिक पुण्य की प्राप्ति हो सकती है। इन चारों के स्वरूप को अच्छी प्रकार से समझना चाहिये वे इस प्रकार हैं - दाता, पात्र, दान देने योग्य द्रव्य और देने की विधि।' इन्हीं चारों को आचार्य उमास्वामी महाराज ने भी अपने ग्रन्थ में उद्धृत किया है। वे लिखते हैं - 'विधि-द्रव्य-दात-पात्रविशेषात्तद्विशेष:'। इन चारों में बस क्रम परिवर्तन ही है नाम तो चारों वही हैं। इससे ये प्रतीत होता है कि आचार्य देवसेन स्वामी ने इन अधिकारों का वर्णन करने में उमास्वामी का ही अनुकरण किया है। - इन चारों के स्वरूप का वर्णन करते हुए आचार्य देवसेन स्वामी लिखते हैं कि दाता - जो भव्य जीव शान्त परिणामों को धारण करता है, जो मन, वचन, काय से दान देने में लगा हो, अत्यन्त चतर हो, दान देने में जिसका उत्साह हो, जो मद या अभिमान रहित हो और दाता के गुणों से सुशोभित हो वह दाता गिना जाता है। महापुराणकार आचार्य जिनसेन स्वामी के अनुसार नौ कोटियों से विशुद्ध अर्थात् पिण्डशुद्धि में कहे गये दोषों के सम्पर्क से रहित दान का जो देने वाला है वह दाता है। नौ कोटियाँ इस प्रकार हैं - देयशुद्धि और उसके लिये आवश्यक दाता और पात्र की शुद्धि ये तीन। दाता की शुद्धि, उसके लिये आवश्यक देय और पात्र की शुद्धि ये तीन। पात्रशुद्धि, उसके लिये आवश्यक देय और दाता की शुद्धि।' सो. उपा. 831 स. सि. 2/4, रा. वा. 2/4/2 भा. सं. गा. 494 त. सू. 7/39 म. पु. 20/136-137 329 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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