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________________ 17. मासैकवासित्व गुण - जो मोह और सख का त्याग करने के लिये किसी भी स्थान पर एक महीने से अधिक न रहते हों। 18. वार्षिक योग युक्तत्व गुण - जीवों की रक्षा के लिए वर्षा ऋतु में चार महीने तक एक ही स्थान पर रहना। 19. अनशन तपोयुक्तता गुण - इन्द्रियों को जीतने के लिए चारों प्रकार के आहार का त्याग कर उपवास धारण करना। 30. अवमोदर्य तपो युक्तता गुण - प्रमाद दूर करने के लिए बत्तीस ग्रास न लेकर दो चार दश आदि ग्रास हो लेकर अल्प आहार लेना। 21. वृत्तिपरिसंख्यान गुण - आशा का त्याग करने के लिये किसी घर का अन्न आदि का संकल्पं कर (यदि ऐसा घर होगा वा ऐसा दाता होगा वा ऐसा अन्न होता तो आहार लूंगा नहीं तो नहीं ऐसा संकल्प कर आहार के लिए निकलना। 22. रसपरित्याग गुण - दूध दही घी मीठा आदि रसों का त्याग करना। 23. विविक्तशय्यासन गुण - जन्तुओं से रहित, स्त्रियों से रहित, मन में विकार. . उत्पन्न करने वाले कारणों से रहित गुफा सूना घर आदि एकान्त स्थान में शय्या आसन आदि धारण करना। 24. कायक्लेशत्व गुण - ग्रीष्म ऋतु में पर्वत पर, जाड़े के दिनों में वन में वा नदी के किनारे, वर्षा में वृक्ष के नीचे ध्यान धारण कर सुख की मात्रा दूर करने के लिए शरीर को कष्ट पहुंचाना। / 25. प्रायश्चित्ताचारात्व गुण - लगे हुए दोषों को शोधन करने के लिये प्रायशिचित्त लेना और व्रतों को शुद्ध रखना। 26. विनय निरतत्त्व गुण - सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र को धारण कर उनका विनय करना उपचार विनय करना रत्नत्रय को धारण करने वालों का विनय करना। 27. वैयावृत्तित्व गुण - आचार्य उपाध्याय साधु आदि दश प्रकारा के मुनियों की शरीर जन्य पीड़ा को दूर करने के लिये उनकी सेवा सुश्रूषा करना। 282 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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