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________________ 2. मध्यमा - इस विधि में होंठ नहीं हिलते, परन्तु अन्दर जीभ हिलती रहती है। इसमें मँह से शब्द बाहर नहीं आते, उसे मध्यमा कहा जाता है। 3. पश्यन्ती - इस विधि में न होंठ हिलते हैं और न ही जीभ हिलती है, किन्तु अन्तरंग में आँखों से देखते हुए मंत्रों के पदों का चिन्तन किया जाता है। अतः इसको पश्यन्ती कहा जाता है। इसमें संकल्प-विकल्प छूटने लग जाते हैं। 4. सूक्ष्म - मन में ही मंत्र के पदों का जाप्य करते हुए वह भी छोड़ देना सूक्ष्म जप कहा जाता है। इस विधि में उपास्य और उपासक का भेद समाप्त हो जाये, आत्मा परमात्मा का भेद समाप्त हो जाय और मंत्र का अवलम्बन छोड़कर आत्म-साक्षात्कार होना संभव होने लगता है। जैसा कि आचार्य पूज्यपाद स्वामी कहते हैं यः परमात्मा स एवाहं योऽहं स परमस्ततः। अहमेव मयोपास्यो नान्यः कश्चिदितिस्थितिः॥' अर्थात् जो परमात्मा हैं वही मैं हूँ और जो मैं हूँ वही परमात्मा हैं, मैं ही स्वयं के द्वारा उपास्य हूँ, अन्य दूसरी स्थिति कैसे? स्वयं के द्वारा मैं स्वयं ही पूजन, ध्यान, चिन्तन के योग्य हूँ, अन्य कोई दूसरा नहीं है। ___ जप शब्द में दो अक्षर हैं - ज और प। ज = जकारो जन्म विच्छेदः, प पकारो पापनाशनः। तस्याज्जप इति प्रोक्त जन्मपापविनाशकः। जप को पदस्थ ध्यान के ही अन्तर्गत माना गया है। जप या पदस्थ ध्यान जन्म-मरण की सन्तति एवं पाप के समूह के नाश के लिये किया जाता है। सूक्ष्म प्रकार का जप निवृत्ति प्रधान होता है। इस अवस्था में ध्याता और ध्येय में कोई भी भेद नहीं रहता है। उसमें अभेद अद्वैतभाव प्रस्फुटित होने लगता है। ध्यान करने वाला निज आत्मा में ही अपने ही आत्मतत्त्व का अन्वेषण करने में तल्लीन होने का प्रकट रूप से पुरुषार्थ करने लगता है। . णमोकार महामंत्र के समस्त पदों का ध्यान किस प्रकार करना चाहिये और वह पद किसका प्रतीक माना गया है। इस पर विचार करके आचार्यों ने यह स्पष्ट किया है समाधिशतक श्लो. 31 270 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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