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________________ है और कर्मक्षय के कारण मोक्ष की प्राप्ति होना आराधना का फल है। इस प्रकार से आराधना आदि ये चार चरण हैं। आचार्य कहते हैं कि आराधना की प्राप्ति करने के लिये संसार के कारणों का त्याग करना ही पड़ता है। तभी शुद्ध आत्मा की आराधना कर पाता है।' पञ्चेन्द्रिय विषय, परिजन, नातेदार आदि से मोह का त्याग किये बिना मुक्ति की प्राप्ति असंभव है। निश्चय आराधना की जितनी उपयोगिता है उतना ही महत्त्व व्यवहार आराधना का है। जिस प्रकार निश्चय आराधना साक्षात् मोक्षफल रूप कार्य की साधिका है, उसी प्रकार व्यवहार आराधना साक्षात् मोक्षफल की साधिका नहीं है अपितु परम्परा से मोक्ष की साधिका है, क्योंकि व्यवहार बीज है। जैसे बीज परम्परा से वृक्ष-फल को प्राप्त हुआ देखा जाता है, साक्षात् नहीं।' यहाँ इतनी बात ध्यान देने योग्य है कि निश्चय आराधना की प्राप्ति होने पर व्यवहार आराधना स्वयं छट जाती है, छोड़ी नहीं जाती। आराधक का स्वरूप पहले कुछ गाथाओं में आचार्य ने आराधना का स्वरूप, भेद और उसके फल का वर्णन किया परन्तु जो उस आराधना को प्राप्त करता है ऐसे आराधक के स्वरूप को अभी तक प्ररूपित नहीं किया। इसलिये अब आचार्य देवसेन स्वामी आराधक का स्वरूप बताते हुए कहते हैं णिहयकसाओ भव्वो दंसणवंतो हु णाणसंपण्णो। दविहपरिग्गहचत्तो मरणे आराहओ हवइ।' अर्थात् निश्चयनय से कषायों को नष्ट करने वाला भव्य, सम्यग्दर्शन से सहित, सम्यग्ज्ञान से सम्पन्न और दोनों प्रकार के परिग्रह का त्यागी पुरुष मरण पर्यन्त आराधना करने वाला आराधक होता है। आराधनासार गा. 15 वही गा. 16 आराधनासार गा. 17 220 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004264
Book TitleDevsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages448
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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