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________________ निष्कर्ष रूप में उपाध्यायजी ने यहाँ तक किया है कि अनालम्बन योग से मोहसागर को पार कर सकते हैं, उनसे अपर श्रेणि आरोहित कर सकते हैं एवं केवलज्ञान की प्राप्ति होती है। अंत में अयोगी अवस्था को अन्य दर्शनकारों ने धर्ममेघ, अमृतात्मा, भवशत्रु, शिवोदय, सत्यानन्द एवं पर ऐसे भिन्न-भिन्न नामों का उल्लेख शास्त्रों में बताये गये हैं। मोक्ष के सन्दर्भ में मोक्ष विचार भारतीय दर्शन की यह विरल विशेषता है जो उसे पाश्चात्त्य दर्शन से पृथक् करती है। पाश्चात्त्य दर्शनिकों के अनुसार दर्शन का उद्देश्य मात्र विश्व और उसकी समस्याओं की व्याख्या करना है जबकि भारतीय दर्शनिकों के अनुसार दर्शन वह विद्या है जो हमें न केवल विश्व के विषय में जानकारी देती है, न केवल तत्त्वमीमांसा के विषय में विचारों को उत्प्रेरित करती है अपितु सत्य शोध का मार्ग बताकर समस्त दुःखों से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। जीवन का कठोर सत्य है-दुःख फिर चाहे उसे शरीरजन्य माना जाए, चाहे बुद्धि अथवा मन से उत्पन्न हो। व्यक्ति की सारी प्रवृत्तियों का केन्द्रबिन्दु है-दुःख से छुटकारा। , पश्चिमी दार्शनिकों ने जहाँ स्वयं को बौद्धिक चिन्तन (तक), नैतिकता और मानवता तक ही सीमित कर रखा है वहाँ भारतीय दर्शनिक चिन्तन का चरम बिन्दु है-मोक्ष। भारतीय दार्शनिक ऋषि पहले थे, चिन्तक बाद में। अतः बौद्धिकता, नैतिकता और मानवता उनका साधन था, साध्य नहीं। ऋषि चिन्तन का चरम लक्ष्य रहा मोक्ष-जो तर्क से उत्पन्न प्राप्त नहीं, अतः तर्कातीत है। मोक्ष का प्रत्यय समाज अथवा मानव की सीमाओं में आबद्ध नहीं होता अतः वह अति सामाजिक है, अतिनैतिक अथवा अतिमानवीय है। भारतीय दर्शन में मोक्ष का सामान्य अर्थ है दुःख चक्र का आत्यन्तिक विनाश, जन्म-मरण के चक्र से सर्वथा मोक्ष। .. भारतीय दर्शन मूल्यपरक दर्शन है। भारतीय मनीषियों ने मूल्य को पुरुषार्थ के नाम से अभिहित किया है। उन्होंने मुख्यतः चार पुरुषार्थों का प्रतिपादन किया है 1. अर्थ-आर्थिक मूल्य 3. धर्म-नैतिक मूल्य 2. काम-मानसिक मूल्य 4. मोक्ष-आध्यात्मिक मूल्य। समस्त भारतीय दार्शनिक परम्पराएँ, चाहे वे नास्तिक हों या आस्तिक, वैदिक हों या अवैदिक, मोक्षविषयक विचार सभी में उपलब्ध होते हैं। भारतीय दर्शनों में मोक्ष का स्वरूप चार्वाक दर्शन आधुनिक समाज का जीवनगत दर्शन है-चार्वाक दर्शन। एकमात्र प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानता है अतः आत्मा, कर्म, पुनर्जन्म, स्वर्ग, नरक, मोक्ष आदि परोक्ष प्रमेयों को स्वीकार नहीं करता। इसलिए इसे नास्तिक दर्शन भी कहा जाता है। यह तो मृत्यु को ही मोक्ष मानता है। यह चार्वाक सिद्धान्त है मरणमेवापवर्ग। सर्वदर्शनसंग्रह में चार्वाक दर्शन सम्मत मोक्ष का स्वरूप बताते हुए कहा है-पारतन्त्रयं बन्धः स्वातन्त्रयं मोक्षः।। 532 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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