SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 537
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सरल वाक्य हो, ऐसे वाक्य जो केवल नामों के संधीत हो। एक अन्य व्याख्या के अनुसार विंटगेस्टाइन के सरल वाक्य निरीक्षण वाक्य है और विंट्गेस्टाइन मूल रूप से तर्कीय अनुभववादी है। किन्तु ये दोनों व्याख्याएँ गलत हैं। विंट्गेस्टाइन का उद्देश्य न तो साधारण भाषा का विकल्प निर्मित करना था, न उसमें सरल वाक्य निरीक्षण वाक्य है। उसका उद्देश्य किसी भाषा विशेष का नहीं बल्कि सभी भाषाओं की अनिवार्य शर्तों को व्यस्त करना था। उसकी मूल समस्या थी-किसी भी भाषा के सार्थक होने के लिए क्या आवश्यक है। उसके अनुसार भाषा सत्ता का चित्र है। सार्थक भाषावाक्यों की समग्रता है और वाक्य का अर्थ वह वस्तुस्थिति है, जिसका वह चित्र है। इस अर्थ में साधारण भाषा बिल्कुल ठीक है। हमारी बोलचाल की भाषा के सभी वाक्य, वास्तव में वे जैसे हैं, तार्किक दृष्टि से पूर्णतः ठीक हैं। किन्तु साधारण भाषा इतनी जटिल है कि ऊपर से उसका तार्किक आकार स्पष्ट नहीं होता। बोलचाल की जो भाषा मानव शरीर रचना का एक भाग है और उससे कम जटिल नहीं है, इससे मनुष्य के लिए यह असम्भव है कि सीधे-सीधे भाषा के तार्किक स्वरूप को जाना जा सके। ___ भाषा विचार को छिपाता है, जिससे परिधान के बाध्य आकार को देखकर विचार के आधार का अनुमान नहीं किया जा सकता, क्योंकि परिधान का बाध्य आकार शरीर के अभिज्ञान के लिए नहीं बल्कि भिन्न उद्देश्य के लिए बनाया गया है।155 ___अतः विंटगेस्टाइन रसल का अनुसरण करते हुए वाक्यों के विश्लेषण पर बल देता है। विश्लेषण के द्वारा ही साधारण भाषा के वाक्यों को सरल वाक्यों में विभक्त किया जाता है। यदि एक मिश्रवाक्य है तो उसमें घटकों के रूप में सरल वाक्यों का होना आवश्यक है। इन सरल वाक्यों के सत्य मूल्य.. पर ही मूल वाक्य का सत्य-मूल्य निर्भर करता है। सरल नामों के संस्थान हैं। नाम एक मूल चिह्न है, जिसका अर्थ सरल वस्तु है। विंटगेस्टाइन के अनुसार अनिश्चित अर्थ नहीं है और निश्चित अर्थ प्राप्त करने के लिए सरल वाक्यों का होना आवश्यक है। जब तक सरल वाक्य नहीं प्राप्त होते, विश्लेषण की प्रक्रिया चालू रहती है। यदि सरल वाक्यों का उदाहरण देना सम्भव न हो तब भी सरल वाक्य आवश्यक है, क्योंकि वे सार्थक भाषा की अनिवार्य शर्ते हैं। विंगेस्टाइन एक और निकर्ष निकालता है, जो वाक्य वस्तुस्थिति के चित्र नहीं हैं। इस प्रकार तत्त्वमीमांसा, नीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र आदि ये वाक्य निरर्थक हैं। अतः कथनीय वाक्यों की निश्चित सीमा है। केवल तथ्यों से संबंधित वाक्य ही सार्थक है। विंटगेस्टाइन कहता है,156 "जो भी कहा जा सकता है, स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है और जिस विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता, मौन आवश्यक है।" विट्गेस्टाइन के अनुसार दर्शन प्राकृतिक विज्ञान नहीं है।67 दर्शन मनोविज्ञान और ज्ञानमीमांसा भी नहीं है। उनके अनुसार दर्शन का क्षेत्र ज्ञान या सत्य नहीं है। दर्शन का सम्बन्ध केवल अर्थ से है। दर्शन सिद्धान्तों का समवाय नहीं, अपितु क्रिया है।58 दर्शन का परिणाम दार्शनिक वाक्य नहीं है बल्कि वाक्यों का स्पष्टीकरण है।159 अतः विंट्गेस्टाइन के अनुसार “सम्पूर्ण दर्शन भाषा की आलोचना है।"160 दर्शन भाषा का स्पष्टीकरण है। उपर्युक्त विवरण से कुछ महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष सामने आते हैं1. दर्शन केवल भाषा-विश्लेषण की क्रिया है2. दार्शनिक समस्याएँ भाषा का तार्किक स्वरूप न समझने के कारण उत्पन्न होती है और 3. साधारण भाषा ठीक है। 460 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy