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________________ * है। जैसा कि धवलाकार ने कहा है-अनेक गुणपर्यायों के द्वारा जो द्रव्य को परिणामान्तर, क्षेत्रान्तर और कालान्तर में ले जाते हैं यानी द्रव्य के विविध पर्यायों का देश और कालयुक्त ज्ञान कराते हैं, वे नय हैं। उच्चरित अर्थपद को अथवा निक्षिपत पद को दृष्टि में रखकर जो पदार्थ को ठीक निर्णय तक पहुंचा देते हैं, वे नय हैं। जिनभद्रगणि ने नय को इस रूप में परिभाषित किया है एगेण वत्थुणोऽणेगधम्मुणो जमवधारणेणेव। नयणं धम्मेणं तओ होइ नओ.............।। जो अनेक धर्मान्तक वस्तु के एक धर्म का अवलम्बन लेकर अवधारणपूर्वक उसे प्रतीति का विषय बनाता है, वह नय है। आलाप पद्धति के अनुसार जो वस्तु को नाना स्वभावों से हटकर उसके एक स्वभाव का बोध कराता है, वह नय है। मलयगिरि ने ज्ञाता के अभिप्राय विशेष को नय कहा है-ज्ञातुरभिप्रायविशेषा नयः। : शान्ताचार्य के अनुसार प्रमाण का प्रवृत्ति के पश्चात् होने वाला परामर्श नय है नयः प्रमाणप्रवृत्युत्तरकालभावी परामर्शः। 43 वादिदेवसूरि ने अनन्तधर्मात्मक वस्तु के एक धर्म को ग्रहण करने वाले और अन्य धर्मों का निराकरण न करनेवाले ज्ञाता के अभिप्राय को नय कहा है। महोपाध्याय यशोविजय ने नय रहस्य में नय की परिभाषा देते हुए कहा है-प्रवृत्त वस्तु के किसी एक अंश का ज्ञान जिससे हो और उस अंश से भिन्न अंश का निषेध न हो, ऐसा अध्यवसाय विशेष ही नय पदार्थ है। . जैन तर्क परिभाषा में भी उपाध्याय यशोविजय ने नय की व्याख्या इस प्रकार बताई है-प्रमाण परिच्छिन्नस्यानन्तधर्मात्मकस्य वस्तुन एकदेशग्राहिणस्तदि तरांशा प्रतिक्षेपिणोऽध्यवसायविशेषा नयाः।46 अर्थात् प्रमाण प्रदत्त अनन्तधर्मात्मक वस्तु के एक अंश का ग्रहण करना और इतर अंशों का प्रतिक्षेप न करना-अध्यवसाय विशेष को नय कहते हैं। देवचन्द्रकृत नयचक्रसार में नय का लक्षण बताते हुए कहा है-नीयते येन श्रुताख्यप्रमाण्य विषयी कृतस्याअर्थस्य शस्तादितदाशौदासीन्यत सम्प्रतिपत्तुरभिप्रायः विशेषो नयः। 7. . श्रुतज्ञान से प्रमाणित किये हुए पदार्थ के अंश विषयी ज्ञान और इतर दूसरे अंश में उदासी भाव रखता हो, ऐसा जो सम्यग् प्रकार को प्राप्त किये हुए अभिप्राय विशेष को नय कहते हैं। अर्थात् वस्तु के एक अंश को ग्रहण कर अन्य अंश के प्रति उदासी भाव रहे, उसे नय कहते हैं। नय शब्द की सार्थकता अनेक अंशवान वस्तु के एकांश का अवलम्बन करके वस्तु को ज्ञान का विषय बनाने हेतु ज्ञान की ओर ले जाना नय है अथवा वस्तु की ओर से ज्ञान के आश्रय में जिसके द्वारा जाना जाए, उसे नय कहते हैं। अमुक स्वभाव से अमुक स्वभाव का परिच्छेद जिससे किया जाए, उसे नय कहते हैं। नय शब्द का प्रयोग अनंतधर्मात्मक वस्तु के एकांश के परिच्छेद के अर्थ में किया गया है।49 290 www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only Jain Education International
SR No.004261
Book TitleMahopadhyay Yashvijay ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmrutrasashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year2014
Total Pages690
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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