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________________ पञ्चम अध्याय ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक अध्ययन 'साहित्य' शब्द सहित-यत् इन दो शब्दों के योग से निर्मित है। ‘सहित' शब्द में 'यत्' प्रत्यय लगने पर साहित्य शब्द की व्युत्पत्ति होती है। जिसका अर्थ शब्द एवं अर्थ का सहभाव होना है। दूसरे शब्दों में जो गद्य या पद्य जीवन और सत्य में से किसी एक रूप का यथार्थ एवं प्रतिबोधित सजीव चित्रण करता है वह ‘साहित्य' है। ज्ञाताधर्मकथा जैन कथा साहित्य का प्रतिनिधि ग्रन्थ है। कथा मानव जीवन के सत्य एवं सौंदर्य को प्रकट करती है। कथा के द्वारा ग्रन्थ में आर्कषण उत्पन्न होता है एवं यथार्थ बोध संहज गम्य हो जाता है। कथा के साहित्यिक स्वरूप को१. कथानक, 2. चरित्रचित्रण, 3. कथोपकथन, 4. देशकाल, 5. भाषा-शैली एवं 6. उद्देश्य इन छ: भागों में बांटा जा सकता है। ज्ञाताधर्मकथांग में उपलब्धता की दृष्टि से इनका विवेचन निम्न प्रकार है१. कथानक - कथानक ‘कथ' धातु से बना है। इसका अर्थ है 'जो कुछ कहा जाए' या 'कथा का छोटा रूप' या 'सारांश'। साहित्य में कार्य-व्यापार की योजना को भी कथानक कहते हैं। सभी कथाओं को कथानक नहीं कहा जा सकता। इन दोनों में अन्तर यह है कि कथा में घटनाओं की प्रमुखता रहती है जिसमें श्रोता या पाठक यह जानने को उत्सुक रहता है कि 'हाँ फिर आगे क्या हुआ?' और कथानक में कार्यकारण सम्बन्ध मुख्य होता है। इसमें श्रोता या पाठक यह जिज्ञासा करता है 'यह कैसे और क्यों हुआ?' कथानक का आधार कहानी है और कहानी में घटनाओं का संकलन होता है। ज्ञाताधर्मकथा में राजा, नायक, मंत्री, राजपुरुष, नेता, पशु-पक्षी आदि कथानकों को लेकर कथा लिखी गई है, अत: उसके आधार पर हम कथानकों को निम्न रूप में विभाजित कर सकते हैं१. सामाजिक 2. ऐतिहासिक 3. राजनीतिक 4. मनोवैज्ञानिक 5. यथार्थवादी 6. अतियथार्थवादी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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