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________________ प्राकृत कथा साहित्य का उद्भव एवं विकास 37 अर्थलोभी वणिक की कथा' आदि कई कथाएँ वर्णित हैं। व्यवहारभाष्य एवं बृहत्कल्प भाष्य में प्राकृत कथाएँ बहुलता से उपलब्ध हैं। व्यवहारभाष्य में भिखारी का सपना, 2 छोटे बड़े काम कैसे कर सकते हैं,३ कार्य की सच्ची उपासना प्रभृति तथा बृहत्कल्प भाष्य में अक्ल बड़ी या भैंस,५ बिना विचारे काम,६ मूर्ख बड़ा या विद्वान वैद्यराज या यमराज, शम्ब, सच्चा भक्त,१० जमायी की परीक्षा११ एवं रानी चेलना१२ आदि कथाएँ वर्णित हैं। इसी तरह के प्रयोजनों को सिद्ध करनेवाली उत्तराध्ययन की सुखबोधनी टीका में लगभग 125 छोटी बड़ी कथाएँ हैं। इस प्रकार टीकायुगीन कथाओं की वर्णनात्मक विशेषताएँ ही आगमों की कथा से उन्हें अलग करती हैं। आगमों की टीका ग्रन्थों की कथाओं को पूर्ण विवेचित किया गया है जिससे कथाएँ विस्तार एवं भाव को प्राप्त हईं हैं तथा विषयों के चयन, निरुपण और सम्पादन में विविधता भी आयी हैं, साथ ही कथाओं में संक्षिप्तता एवं उद्देश्य के प्रति सजगता का समावेश भी हुआ है। नियुक्तियों और चूर्णियों में ऐतिहासिक, अर्द्ध-ऐतिहासिक, धार्मिक और लौकिक कथाएँ उपलब्ध होती हैं। इनके भाष्य ग्रन्थों में अधिकांश लोक कथाएँ और उपदेशप्रद नीति कथाएँ हैं। इस प्रकार टीका साहित्य कथा और आख्यानों का अक्षय भण्डार कहा जा सकता है। आगमों के मूल में जो कुछ भी था उसे व्याख्याकारों ने अधिक रोचक बना दिया है। (स) स्वतन्त्र कथा साहित्य प्राकृत कथा साहित्य के विकास की तीसरी सीढ़ी स्वतन्त्र लेखकों द्वारा कथा साहित्य के निर्माण के रूप में प्राप्त होती है। इन कथाओं की विशेषता यह है कि कथाकार इसमें कथात्मक दायित्व के निर्वाह की चिन्ता से चिन्तित रहता है। इस युग की मुख्य कथाओं में वसुदेवहिण्डी, समराइच्चकहा, तरंगवती, पउमचरियं आदि हैं। तरंगवती कथा आज अनुपलब्ध है फिर भी इसके उल्लेखों से ज्ञात होता है. कि यह एक धार्मिक उपन्यास था जिसकी ख्याति लोकोत्तर कथा के रूप में 1. सूत्रकृतांग-चूर्णि, पृ०-४५२.. 2. व्यवहारभाष्य, उद्देशक-३, पृ०-८. - 3. व्यावहारभाष्य, पृ०-७. 4. वही, पृ०-५१. 5. बृहत्कल्पभाष्य पीठिका, पृ०-५३. 6. बृहत्कल्प भाष्य पीठिका, पृ०-५६. 7. वही, पृ०-११०. 8. वही, पृ०-१११. . 9. वही, पृ०-५६-५७. 10. वही, पृ०-२२३. - 11. वही, पृ०-२२३. 12. वही, पृ०-५७. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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