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________________ घ) अर्धमागधी-गाथाओं का उदाहरण धम्मो मंगलमुक्किटुं अहिंसा संजमो तवो। देवा वि तं नमसंति जस्स धम्मे सया मणो॥ दशवै० १/१।। - धर्म उत्कृष्ट मंगल है, वह धर्म अहिंसा, संयम और तप रूप है। जिसका मन सदा धर्म में रमा रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। जे य कन्ते पिए भोए लद्धे विपिढिकुव्वई। साहीणे चयइ भोए से हु चाइ त्ति वुच्चइ॥ दशवै० २/३॥ - त्यागी वही कहलाता है जो कान्त और प्रिय भोग उपलब्ध होने पर, उनकी ओर से पीठ फेर लेता है और स्वाधीनता पूर्वक भोगों का त्याग करता है। कहं चरे कहं चिढे कहमासे कहं सए। कहं भुजंतो भासंतो पावं कम्मं न बंधई॥ दशवै० ४/७॥ - कैसे चले ? कैसे खड़ा हो ? कैसे बैठे ? कैसे सोए ? कैसे खाए ? कैसे बोले ? जिससे पाप-कर्म का बन्धन न हो। पूर्वोक्त प्रश्नों का उत्तर यह है - जयं चरे जयं चिट्ठे जयमासे जयं सए। जयं भंजंतो भासंतो पाव कम्मं न बंधई। दशवै० ४/८॥ - यतनापूर्वक चलने, यतनापूर्वक खड़ा होने, यतनापूर्वक बैठने, यतनापूर्वक सोने, यातनापूर्वक खाने और यतनापूर्वक बोलने वाला पाप-कर्म का बन्धन नहीं करता। . जो जीवे वि न याणाइ अजीवे वि न याणइ। जीवाजीवे अयाणंतो कहं सो नाहिइ संजमं॥ दशवै० ४/१२॥ - जो जीवों को नहीं जानता, अजीवों को भी नहीं जानता वह जीव और अजीव को न जानने वाला संयम को कैसे जानेगा ? ६४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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