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________________ घ) पालि - धम्मपद की गाथाओं का उदाहरण मनोपुब्बंगमा धम्मा, मनोसेट्ठा मनोमया । मनसा चे पदुट्ठेन, भासति वा करोति वा । ततो नं दुक्खमन्वेति चक्कं व वहतो पदं । धम्मपद १ || - विचार सभी प्रकार के धर्मों के अग्रदूत हैं। सभी धर्म विचारों पर आश्रित है, विचारों से उत्पन्न हैं । यदि कोई बुरे विचार के साथ बोलता है या कोई काम करता है तो दुख उस व्यक्ति का पीछा उसी तरह करता है जैसे पहिया गाड़ी खींचने वाले बैल के पैर का पीछा करता है। न हि वेरेन वेरानि, सम्मन्तीध कुदाचनं । अवेरेन च सम्मन्ति, एस धम्मो सनंतनो ।। वही ५ ॥ - इस संसार में वैर से वैर कभी शान्त नहीं होते अपितु अवैर ( अर्थात् प्रेम) से ही शान्त होते हैं । यही शाश्वत नियम है। मासे मासे सहस्सेन, यो यजेथ सतं समं । एकं च भावितत्तानं, मुहुत्तमपि पूजये । सा एव पूजना सेय्या, यं चे वस्ससतं हुतं । वही १०६ ॥ - - जो मनुष्य सौ बरस तक हजारों (रुपयों) के द्वारा यज्ञ करे और (दूसरी ओर ) आत्मस्वरूप को जानने वाले एक ही व्यक्ति की क्षणमात्र पूजा करे तो वही पूजा सौ वर्ष तक किये गये हवन (यज्ञ) की अपेक्षा श्रेष्ठ है। २. मागधी प्राकृत क्षेत्र की बोली को मागधी कहा जाता है। अन्य प्राकृतों की तरह इसका स्वतन्त्र साहित्य तो उपलब्ध नहीं है किन्तु संस्कृत नाटकों और शिलालेखों में इसका भी प्रयोग मिलता है। ऐसा प्रतीत होता है कि मागधी कोई निश्चित भाषा नहीं रही, बल्कि कई बोलियों का Jain Education International ५५ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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