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________________ विसारदेन सव-विजावदातेन नव-वसानि-योवरज [प] सासितं (*) संपुणं-चतुवीसति-वसो तदानि वधमानसेसयो वेनाभिविजयो ततिये ३. कलिंग-राज-वसे(स)-पुरिस-युगे महाराजाभिसेचनं पापुनाति (*) अभिसितमतो च पधमे वसे वात-विहत-गोपुर-पाकारनिवेसनं पटिसंखारयति कलिंगनगरि खिबी [२](1) सितल तडाग-पाडियो च बंधापयति सवूयान-प [टि]संथपनं च ४. कारयति पनसि(ति)साहि सत-सहसेहि पकतियो च रंजयति (॥*) दुतिये च वसे अचितयिता सातकनि पछिम-दिसं हय-गज-नर-रध-बहुलं दंडं पठापयति (1*) कन्हबेंणां-गताय च सेनाय वितासिति असिकनगरं (1) ततिये पुन वसे..। हिन्दी अनुवाद १. अर्हतों को नमस्कार। सभी सिद्धों को नमस्कार। ऐर (आर्य) महाराज महामेघवाहन, चेदि राजवंश की वृद्धि करनेवाले, प्रशस्त शुभ लक्षणों से युक्त, सकल भुव (चतुरन्त) में व्याप्त गुणों से अलंकृत, कलिंगाधिपति, श्री से युक्त, पिंगल शरीर-वाले, श्री खारवेल - २. पन्द्रह वर्ष (की आयु) तक राजकुमारों के उपयुक्त क्रीड़ा करते ___ रहे। पश्चात् उन्होंने लेख, रूप, गणित, व्यवहार-विधि (कानून की .... शिक्षा) में दक्षता प्राप्त की। तदनन्तर सर्व-विद्या में पारंगत होकर नौ वर्ष तक (उन्होंने) युवराज के रूप में प्रशासन किया। सम्पूर्ण चौबीस वर्ष पूर्ण कर वे - ३. कलिंग-राजवंश के तृतीय पुरुष, महाराज के रूप में अभिषेक ... कराते हैं (राजा कहलाते हैं) ताकि अपने शेष यौवन को विजयों द्वारा समृद्ध करते रहें। अभिषिक्त (राजा) होने के बाद प्रथम वर्ष में वे तूफान से नष्ट कलिंगनगरी खिबिर के गोपुरों, प्राकारों, ३७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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