SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ण विकार और वर्ण लोप की जिन प्रवृत्तियों के आधार पर प्राकृत भाषाओं का विकास हुआ है। वे अपभ्रंश में अपनी चरमसीमा पर पहुंच गयी हैं । इसीलिए अपभ्रंश भाषा में कोमलता अधिक है । इस दृष्टि से अपभ्रंश भाषा निश्चित ही हिन्दी भाषा की जननी है। आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं में हिन्दी का प्रमुख स्थान है। देश के अधिकांश लोगों द्वारा यह बोली जाती है । राष्ट्रभाषा होने का इसे गौरव प्राप्त है। दूरदर्शन, सी.डी., कम्प्यूटर, इण्टरनेट आदि के बढ़ते प्रभाव ने भी हिन्दी भाषा की लोकप्रियता, व्यापकता और प्रभाव को तेज गति प्रदान की है। अब तो विश्व के अनेक देशों में इसका अध्ययन-अध्यापन हो रहा है। देश के विभिन्न भागों और भाषाओं की सम्पर्क भाषा होने के कारण हिन्दी में विभिन्न भाषाओं और लोकभाषाओं के शब्द भी सम्मिलित हो गये हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि अपभ्रंश भाषा और साहित्य का ही विकसित रूप हिन्दी है । डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार "साहित्यिक परम्परा की दृष्टि से विचार किया जाये तो अपभ्रंश के प्रायः सभी काव्यरूपों की परम्परा हिन्दी में ही सुरक्षित है ।" डॉ. सकलदेव शर्मा लिखते हैं - "हिन्दी काव्य का विषय ही नहीं, उसकी रचना शैली और छन्दों पर भी अपभ्रंश साहित्य का प्रभाव है। अलंकारों के लिए भी हिन्दी अपभ्रंश की ऋणी है। ध्वन्यात्मक शब्दों का प्रयोग भी हिन्दी में अपभ्रंश से आया। अपभ्रंश की अनेक लोकोक्तियों, मुहावरों और कथानक रूढ़ियों को भी हिन्दी ने सहर्ष अपना लिया है। इस तरह भावपक्ष और कलापक्ष दोनों ही दृष्टियों से हिन्दी साहित्य अपभ्रंश साहित्य से प्रभावित है। हिन्दी, प्राकृत और अपभ्रंश का अन्तः सम्बन्ध बहुत प्रगाढ और गहरा है क्योंकि हिन्दी में अनेक भाषाओं के बहुतायत शब्द हैं जरूर, किन्तु यदि भाषाशास्त्रीय दृष्टि से अध्ययन किया जाये तो स्पष्ट है कि Jain Education International १०३ - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy