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________________ ७. चूलिका पैशाची प्राकृत डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री (प्रा. भा. सा. आलो. इति., पृ. ९४) के अनुसार चूलिका पैशाची, पैशाची का ही एक भेद है। इसका सम्बन्ध सम्भवतः " शूलिग्' अर्थात् काशगर से माना जाय तो अनुचित न होगा । उस प्रदेश के समीपवर्ती चीनी, तुर्किस्तान से मिले हुए पट्टिका लेखों में इसकी विशेषतायें पायी जाती हैं । चूलिका पैशाची के कुछ उदाहरण हेमचन्द्र के कुमारपाल और जयसिंह सूरि के हम्मीर - मर्दन नामक नाटक तथा षड्भाषा स्तोत्रों में पाये जाते हैं। — T क) चूलिका की भाषागत सामान्य विशेषतायें कुछ विद्वानों ने चूलिका पैशाची को पैशाची का ही भेद माना है, जबकि कुछ विद्वान् इसे स्वतन्त्र भाषा मानते हैं। पैशाची से इसमें थोड़ा ही अन्तर है। पैशाची की अपेक्षा चूलिका में र के स्थान पर विकल्प से ल होता है । जैसे - राजा > लाचा, चरण > चलन, गोरी > गोली । इसी तरह भ् को फ् आदेश होता है। जैसे- भवति > फोति । “प्राकृत शब्द प्रदीपिका " (नृसिंह शास्त्री कृत) के अनुसार चूलिका पैशाची प्राकृत की निम्नलिखित विशेषताएं हैं - रोलस्तु चूलिका पैशाच्याम् इस सूत्र के अनुसार र को ल - ( विकल्प से) होता है - रामः > लामो, रामो । गजडजवघझढ़धभां कचटतपखछठथफाल् इस सूत्र से क्रमशः १. ग को क (नगः > नको, मार्गणः > मक्कनो । २. ज हो च (राजा > राचा, लाचा) । Jain Education International ३. ड को ट (डमरुकः > टमरुको, टमलुको) । ४. द को त ( मदनः > मतनो) ५. ब को प ( बालकः > पालको) । ८८ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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